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________________ ( 56 ) वृक्षों में सुशोभित एक नंदन प्यारा था । विशाखभूति के उसी राजगृह नगर में नाना गुल्मों, लताओं और नाम का बाग था जो कि विश्वनंदी को प्राणों से अधिक पुत्र ने वनवालों को डांटकर जबर्दस्ती वह वन ले लिया जिससे उन दोनों - विश्वनंदी और विशाखनंदी में युद्ध हुआ । विशाखनंदी उस युद्ध को नहीं सह सका अतः भाग खड़ा हुआ । यह देखकर विश्वनंदी को वैराग्य उत्पन्न हो गया और वह विचार करने लगा कि इस मोह को धिक्कार है । वह सबको छोड़कर संभूत गुरु के समीप आया और काका विसाखभूति को अग्रगामी बनाकर अर्थात् उसे साथ लेकर दीक्षित हो गया । वह शील तथा गुणों से सम्पन्न होकर अनशन तप करने लगा तथा विहार करता हुआ एक दिन मथुरा नगरी में प्रविष्ट हुआ । वहाँ एक छोटे बछड़े वाली गाय ने क्रोध से धक्का दिया । जिससे वह गिर पड़ा । दिगम्बर मतानुसार दुष्टता के कारण राज्य से बाहर निकला हुआ मुर्ख विशखानन्दी अनेक देशों में घूमता हुआ उसी मथुरा नगरी में आकर रहने लगा था। वह उस समय एक वेश्या के मकान की छत्त पर बैठा था । वहाँ से उसने विश्वनन्दी को गिरा हुआ देखकर क्रोध से उसको हँसी की कि तुम्हारा वह पराक्रम आज कहाँ गया । विश्वनन्दी को कुछ शल्य था अतः उसने विशाखनन्दी की हँसी सुनकर निदान किया । तथा प्राणक्षय होने पर महाशुक्र स्वर्ग में जहाँ कि पिता का छोटा भाईं उत्पन्न हुआ था, देव हुआ। वहाँ सोलह सागर प्रमाण उसकी आयु थी । समस्त आयु भर देवियों और अप्सराओं के समूह के साथ मनचाहे भोग भोगकर वहाँ से च्युत हुआ और इस पृथ्वी तल पर जम्बूद्वीप सम्बन्धी भरत क्षेत्र के सुरम्य देश में पोदनपुर नगर के राजा प्रजापति Sat प्राणप्रिया मृगावती नाम की महादेवी के शुभ स्वप्न देखने के बाद त्रिपृष्ठ नाम का पुत्र हुआ । काका का जीव भी वहाँ से महाशुक्र स्वर्गं से च्युत होकर इसी नगरी के राजा की दूसरी पत्नी जयावती के विजय नाम का पुत्र हुआ । और विशाखनन्दी चिरकाल तक संसार चक्र में भ्रमण करता हुआ विजयार्धं पर्वत की उत्तर श्रेणी की अलका नगरी के स्वामी मयूरग्रीव राजा के अपने पुण्योदय से शत्रु राजाओं को जीतने वाला अश्वग्रीव नाम का पुत्र हुआ । इधर विजय और त्रिपृष्ठ - दोनों ही प्रथथ बलभद्र तथा नारायण थे, उनका शरीर अस्सी धनुष ऊँचा था और चौरासी लाख पूर्व की उनकी आयु थी। विजय का शरीर शंख के समान सफेद था और त्रिपृष्ठ का शरीर इन्द्रनीलमणि के समान नील था । वे दोनों उदण्ड अश्वग्रीव को मारकर, तीन खंडों से शोभित पृथ्वी के अधिपति हुए थे। वे दोनों ही सोलह हजार मुकुठ बद्ध राजाओं, विद्याधरों एवं व्यंतर देवों के आधिपत्य को प्राप्त हुए थे | त्रिपृष्ठ के धनुष, शंख, चक्र, दंड, असि, शक्ति और गदा - ये सात रन थे जो कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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