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________________ ( ३५४ ) तओ ताणं भगवंताणं समागमं सोअण कोऊहल-विन्माण-हे पूयाइदंअणत्थमागया सव्वे पासंडिणो, गिहत्था, भषणवाइ-वाणमंतर-जोइसवेमाणिया (ण) य देवाणमणेगाउ कोडीउ त्ति। कुलगिरिणो विव धणियं उण्णयवसा सहतिते दो पि । निट्टि (ह) विय-मयण-पसरा गेविंजय-तियस संकासा॥ जिय-विसय-राग-पसरा महानहिंद व्व विवुह-नर-महिया। गयणं व निरुपलेवा सक्कीसाणव्व जण-पयडा॥ करिणोव्व-दिण्ण-दाणा गय-केसरिणोध खषिय मम पसरा । रविणोव्व खविय-दोसा तरुणो विव सउण-गण-निलया || साहिय-विजानमि-विणमिणो व्व ससिणो व्व पड्ढियाणंदा । मणिणु व्ध दलिय-तिमिरा हरिणो ब्ध पसत्य-सम्मत्ता ॥ दोन्नि वि अवसर (अइसय)-कलियादोन्नि वि निय-तेय-तविय-दढ-पाषा। दोन्नि वि सवसिरि-सहिया दोन्नि घि सिद्धीए गय-चिस्ता ॥ दोन्नि वि गरुय पयावा दोन्नि वि जिणवयण-नहयल-मियंका। दोन्नि षि वित्थरिय-जसा दोन्नि वि तियलोय-नय-चलण्णा ।। इय ते दोन्नि वि दिट्ठा तियसासुर-खयर-नर-गण-पहूहि। दट्ठन्व-दिट्ठ-सारा तेलोक्क-नमंसिया बीरा ॥ तओ तित्थाहिय-गणहरो त्ति काऊण सीसाईण पोहणत्थं सषिणयं आणमाणेणावि पुच्छिओ गोयमसामी केसिगणहरेण पुष्वुत्त-संसर (ए)। गोयमेण भणियं---'उसभसामि [ तित्थ-साहु] णो अच्छतभुज (ज्जु) य-जडा, वद्धमाणसामि-तित्थ-साहुणो पुण अच्चंत-वक-जडा। अओ पुघिल्ल-साहूण दुन्धिसोहओ, पच्छिमाण पुण दुरणुपालओ। इमिणा कारणेण दोण्हं पि पंच महव्वयाइ-लक्खणो। मज्झिम-जिण तित्थ-साहुणो पुण उजुया विसेसण्णुणो, तेण धम्मे दुहा कए त्ति । निच्छएण पुण सम्मदसण-नाण-चरित्ताणि निव्वाणमग्गो, ताणि य सव्वेसि पि तित्थयर-सीसाणं सरिसाणि त्ति । अवि य। केसी-गोयमणामं तेवीसइमं तु उत्तरायणं । एवंविह-पुच्छाओ क्याओ तत्थ केसिस्स ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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