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________________ ( ३५२ ) राजा सिंहरथ एक बार वक्र शिक्षित अश्व पर सवारी करने के कारण जंगल में बहुत दूर भटक गये। जब घोड़ा रुका और राजा उसके नीचे उतरा तो देखा सामने एक ऊँचे पर्वत पर एक सुन्दर राजमहल है। राजा मन ही मन कोतूहल लिए उस महल में घुसा। महल भव्य था। चारों ओर साज-सजा अच्छी थी पर था सुनसान । मन ही मन विस्मय लिए राजा ज्योंही महल में बढ़ा तो एक रूपवती कन्या ने राजा का स्वागत किया । राजा ने जब उस सुन्दरी का परिचय जानना चाहा, तब कन्या ने कहा-वैताढ्य पर्वत के 'तोरणपुर' नगर के महाराज दृढशक्ति की मैं पुत्री हूँ, मेरा नाम 'कनकमाला' है। मेरे रूप पर मुग्ध बना एक विद्याधर मुझे वहाँ से यहाँ ले आया। जब मेरे भाई को पता लगा तो वह भी यहाँ आया। दोनों परस्पर चिड़ पड़े। और दोनों एक दूसरे को मार गिराया। मैं असहाय बनी यहाँ रह रही हूँ। आपको देखते ही मैं आपके प्रति समर्पित हूँ। आप मुझे स्वीकार कीजिये। सिंहरथ ने उसके साथ वहीं गांधर्व विवाह कर लिया। उसे लेकर विमान में बेठकर अपने राज्य में लौट आया। प्रतिदिन विमान में बैठकर उसके साथ इधर-उधर घूमने जाने लगा। पर्वत पर विशेष रूप में जाता इसलिए सिंहरथ का नाम 'नग्गति'' पड़ गया। नग्गति एक दिन अपने सेवकों के साथ वन भ्रमण को गया, मार्ग में फल-फूल से लदा हुआ आम्र वृक्ष देखा। राजा उस पर अतिशय मुग्ध हो उठा और उसे बार-बार देखता रहा। उसने हाध ऊँचा करके एक गुच्छा तोड़ लिया। उसके पीछे आने वाले सेवकों ने भी फलफूल पत्ते तोड़े। पेड़ ढूंठ रह गया। शाम को जब राजा नग्गति वन विहार से लौटा तो उसी आम्र वृक्ष को सूखा हुआ, फलफूलों से हीन देखकर चौंका। चिंतन ने करवट ली। सोचायह सारी पौद्गलिक रचना नाशवान् है । सरस से सरस दिखने वाली वस्तु कितनी नीरस लग जाती है। यों चिंतन करते ही उन्हें जाति-स्मरण ज्ञान हो गया । वैराग्य जगा । स्वयं के हाथ से पंचमुष्टि लुंचन करके साधु बन गया। और प्रत्येक बुद्ध कहलाया। .७२ कालोचित्तक्रियायां केशिगणधर कथा कालाणुरूवं-किरियं सुयाणुसारेण कुरू जहाजोगं । जह केसिगणहरेणं गोयम-गणहारिणो पिहिया ॥ कालाणुरूपं-क्रियां पंचमहाव्रतादिलक्षणामागमानुसारेण यथा गौतमसमीपे पार्श्वनाथीयकेसि (शि) गणधरेण कृतीति । १ नगति-नगगति पहाड़ पर जाने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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