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________________ ( ३५१ ) यो बिचार कर नमिराज सारी राज्य संपत्ति को ठुकरा कर चल पड़े। स्त्रियो, नगर जनों का विलाप भी उनके संयम पथ में बाधक न बन सकी। दीक्षा लेने के लिए उत्सुक बने नमि से देनेन्द्र ने आकर प्रश्न किये। राज्य की संरक्षण करना समुचित बताकर संयम न लेने के लिए कहा पर विदेह बने नमिराज ने उन प्रश्नों का समुचित और समयोचित उत्तर देकर देवेन्द्र को संतुष्ट किया। संयमी बनकर उग्र तपस्या के द्वारा कर्मक्षय करके केवल ज्ञान प्राप्त किया और सिद्धि स्थान में जा विराजे । ये प्रत्येक बुद्ध कहलाये । '४ नग्गई राजा–प्रत्येक बुद्ध तहा गंधार-जणवए पुरिसपुरे नगरे जयसिरिकुलमंदिर नग्गई राया। तस्स पियाहिं सहभोगे भुंजंतस्स संपत्तो कणिर-कलयंठि भुंजंतस्स संपत्तो कणिर-कलयं ठि-खाबूरिय-धणंतरालो, घिरहानलतविय-नियत्तमाण-पावासुओ, विसहमाण-कहोह-रयरेणु-रंजिय दियंतरालो, माहंदगाहि-गंधायड्ढिय-भभिरभमरोलिं-झंकार-मणहरो, दीसंत-नाणाविह-तियस-जत्ता-महूसयो, पडु-पडहसलरि-पडहिय-सहापूरिजमाण-गयणगणो वसतो त्ति । अघिय गलयानिलो चियंभइ चूओ महमहइ परहुया रसइ । अचिजह घिसमसरो हिययारूढो पिययमोव्व। एयारिसे वसंते उजाणं पढिएण नरवडणा। मंजरि-निषह-सणाहो साणंद पुलइओ चूओ॥ अकोऊहल्लेणं गहियाताओ मंजरी राइणा, तयणु समत्थ-खंधावारेण पि। बिल्लत्तो जाओ खाणुय मेत्तो। रमिऊण नियत्तमाणेण पुच्छिया आसण्ण नरा-'भो भो! कत्थ सो चूओ! तेहिं भणियं-देव। जापतए गहिया मंजरी। ताव तव खंधावारेण; एवमा पत्थंतरं पापिए एसो सो चुओ' त्ति । तओ सषिसायं चिंतियं राइणा-'अन्यो। करिकण्ण-चंचलाओ जीवियजोधण-धण-सयण-रयण पिय-पुत्त-मित्ताइयाओ विभूइओ। तकिमणेण भवनिबंधणेण रज्जेण?' संखुखो लो वि गहिय-सामण्णो विहरि पयत्तो ति। -धर्म• पृ० १२२ उत्त० अावृत्ति 'गांधार' देश का राजनगर था पुण्डूवर्धन। उसके राजा का नाम था "सिंहरथ' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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