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________________ ऊहापोहं ततस्तस्य कुर्षाणस्य मुहुर्मुहुः । स्वप्नस्मरणवजातिस्मरणं तत्क्षणादभूत ।। १२७ ॥ स दध्यौ दर्दु रश्चैवं द्वारे संस्थाप्य मां पुरा। द्वास्थो यं वन्दितुमगात् स आगाद्भगवानिह ।। १२८ ।। यथैते यान्ति तं द्रष्टुं लोका योस्याम्यहं तथा । सर्वसाधारणी गंगा न हि कस्यापि पैतृकी ।। १२६ ॥ ततोऽस्मरन्दनाहेतोरुत्प्लुत्योत्प्लुत्य सोऽध्वनि | आपांस्तेऽश्वखुरक्षुण्णो मेकः पंचत्वमाप्तवान् ॥ १३०॥ दर्दुरांकोऽयमुत्पेदे देवोऽस्मद् भक्तिभाषितः । भावना हि फलत्येष विनानुष्ठानमप्यहो ॥ १३१ ॥ -त्रिशलाका पर्व १०सर्ग : उस समय पहली वापिका में से जल भरती हुई स्त्रियों के मुख से (भगवान महावीर) आगमन का वृत्तांत सुना । उस वापिका में स्थित ददुर विचार करने लगा कि मैंने पहले सुना है। बारंबार उसका ऊहापोह करने से स्वप्न में स्मरण की तरह उसे तत्काल जाति स्मरण शान हुआ। फलस्वरूप वह दर्दुर चिंतन करने लगे कि-"पूर्व द्वार पर मुझे छोड़कर द्वारपाल जिसको वन्दनार्थ गया था। वे भगवान जरूर यहाँ आये होंगे। उनको वन्दन करने के लिए जैसे ये लोक जाते है उसी प्रकार मुझे भी जाना चाहिए। क्योंकि गंगानदी सबको एक समान है किसी के पिता विशेष की नहीं है । ऐसा विचार कर दर्दर मुझे ( वन्दनार्थ वापिका) के बाहर देखकर निकला। यहाँ से यहाँ आ ही रहा था कि मार्ग में तुम्हारे घोड़े की खरी से अकड़ा कर मृत्यु को प्राप्त हुआ। परन्त हमारी ओर के भक्तिभाव के साथ मृत्यु को प्राप्त होने से वह ददुरांक नामक देव हुआ । “अस्तु अनुष्ठान के बिना भी भावना फलित होती है। मगध जनपद, विदेह जनपद, सूरसेन जनपद, पांचाल जनपद, कौशल जनपद, काशी जनपद, वत्स जनपद-वत्सभूमि, अंगज जनपद, कल्लाक सन्निवेश। तथा नालंदा, नन्दीपुर, वैशाली, महिच्छत्रा नगरी, राजपुर, छम्माणि, मध्यम पावा आदि में । १ नोट-वर्धमान महावीर ने इन ग्राम नगरों के अतिरिक्त कैवल्यावस्था में निम्नलिखित स्थलों में भी विचरण किया था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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