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________________ ( १६८ ) उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर, यावत् पृथ्वी शिलापट्ट था । उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत से अन्यतीर्थी रहते थे । अन्यदा किसी समय श्रमण भगवान् महाबीर स्वामी वहाँ पधारे - यावत् परिषद् वंदना कर चली गयी । . २० तरणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ रायगिहाओ णयराओ गुणसिलाओ वेश्याओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरह । तेणं कालेणं तेणं समएणं उल्लुयतीरे णामं णयरे होत्था, वण्णओ । तस्स णं उल्लुयतीरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एत्थ णं एगजंबूर णामं चेइए होत्था वण्णओ । तपणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयाइ पुव्वाणुपुवि वरमाणे जाव एगजंबूर समोसढे जाव परिसा पडिगया - भग० श १६ / ७३ प्र४७/४८/०७१७ किसी दिन श्रमण भगवान् महावीर राजगृह नगर अवस्थित गुणशीलक उद्यान से वहिर्गमन कर अन्य प्रान्तों में बिहार करने लगे । उसी समय - उल्लुकतीर नामक नगर के बाहर अर्थात ईशान कोण में एक 'जम्बूक' नाम का उद्यान अवस्थित था जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरते हुए यावत् किसी दिन पधारे। परिषद् निज निज स्थान लोठ गई । .२१ राजगृही में पदार्पण अधिराजगृह वीरश्वत्ये गुणशिलाह्वये । गत्वाऽथ समवासार्षीत् सुरासुरनिषेवितः ॥ ३२७॥ चुलनी पितृतुल्यर्द्धिर्महाशतक नामकः । गृह यभूत्तस्य पत्न्यश्च रेवत्याद्यास्त्रयोदशः ॥ ३२८ ॥ अन्यदा वीरप्रभु राजगृह नगर के बाहर गुणशील नामक चैत्य में पधारे । उस नगर में चुलनी पिता की तरह समृद्धि वाला महाशतक नामक एक गृहस्थ रहता था -- उसके रेवती आदि तेरह पत्नियां थी । .२२ शालिभद्र - धन्यमुनि के साथ प्रभु राजगृह पधारे - त्रिशालाका० पर्व १० / सर्ग ८ अन्येद्युः श्रीमहावीर स्वामीना सहितौ मुनी | आजग्मत् राजगृहं पुरं जन्मभुवं निजाम् ॥१५३॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १० अन्यदा वीरस्वामी के साथ दोनों महामुनि स्वयं की जन्मभूमि राजगृह पधारे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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