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________________ (१८) -३५ राजगृही में पोतनपुर में प्रसन्नचंद्र राजर्षि की दीक्षा के बाद भगवान् का कालान्तर में राजगुही पदार्पण - पवनवें वर्ष में बिहरन् स्वामिना सार्धं तप्यमानस्तपः परम् । राजर्षिः स क्रमात्सूत्रार्थपारगः ॥२४॥ अजायत तेनर्षिणाऽपरैश्वापि ऋषिभिः परिवारितः । विहरन् भगवान् वीरौ ययौ राजगृहेऽन्यदा ॥ २५ ॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग ६ पोतनपुर से भगवान् के साथ विहार करते हुए और उग्र तपस्या करते हुए प्रसन्नचंद्र राजर्षि अनुक्रम से सूत्रार्थ के पारगामी हुए । अन्यदा प्रसन्नचंद्र और अन्यान्य मुनियों से परिवारित भगवान् राजगृही नगरी पधारे । . ३६ कांपिल्यपुर नगर में (क) तेणं कालेणं तेणं समपणं कंप्पिल्लपुरे नयरे । सहसंबवणे उज्जाणे । जियसत्तू दाया ॥२॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे जाव जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओह ओगिoिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥७॥ तपणं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ कंपिल्लपुराओ नयराओ सहसंबवण्णओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमद्द, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयबिहारं विहरत्र ॥ १५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ||२५|| सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ ||३२|| Jain Education International उवा • अ ६ उस काल उस समय में, कंपिलपुर नगर में सहस्राम्बवन नामक एक सुन्दर उद्यान था । उसी काल - उस समय, श्रमण भगवान् महावीर वहाँ पधारे तथा यथाप्रतिरूप अवग्रह ग्रहण कर संयम - तप से अपनी आत्मा को भावित कर विहरण करने लगे । तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर कम्पिलपुर अवस्थित सहस्राम्बवन उद्यान से हिर्गमन कर जनपद में यत्र-तत्र विहार करने लगे । २४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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