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________________ ३. राजगृह में पदार्पण की सूचना १ तपणं से महत्तरगा जेणेव समणं भगवं महावीरे लेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणंभगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदतिनमंसंति, वंदित्तानमंसित्ता नामगोयं आपुच्छंति नामगोयं आपुच्छित्ता नामगोयं संपधारंति, संपधारित्ता एगओ मिलंति, एगओ मिलित्ता एगतावक्कमंति, एगंतमवक्कमित्ता एवं वयासी जस्स णं देवाशुपिया ! सेणिए राया भंभसारे दंसणं कखति, जस्स णं देवाणुपिया ! सेणिए राया दंसणं पीहेति, जस्सणं देवाणुपिया, सेणिए राया दंसणं पत्थति, जस्स णं देवाणुपिया ! सेणिए राया दंसणं अभिलसति । ( १३३ ) जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया नामगोत्तस्स वि सवणाए हट्ठतुट्ठ जाव भवति, सेणं समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे जाव सव्वण्णु सव्वसी वपुवि वरमाणेगामानुगामं दूरइज्जमाणे सुहं सुहेणं विहरमाणे इमागए इहसमोसढे इह संपत्ते जाव अप्पाणं भावेमाणे सम्मं विहरs | तं गच्छामि णं देवाशुप्पिया । सेणियस्स रम्न्नो एयमहं निवेदेमो पियं भे भवउ त्तिकट्टु अण्णमण्णस्स घयणं पडिसुणेति, पडिणित्ता जेणेव रायगिहे नगरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता, रायगिहं नगरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सेणियस्स रम्न्नो गिहे जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं करगलपरिगहियं जावजवणं विजएणं बद्धावेति, बद्धावित्ता एवं वयासी जस्सणं सामी दंसणं कंखतिजाव सेणं समणे भगवं महावीरे गुणसिले चेइए जाव विहर तस्सणं देवाणुप्पिय पियं निवेदेमो । पियं मे भयउ ॥ - दसासुन्दशसा १० / सू ६ राजगृह में भगवान् के पदार्पण के पश्चात् श्रेणिक राजा के उद्यानपाल आदि जिस स्थान में भमग भगवान महावीर विराजते थे वहां आये और उन्होने भगवान् को तीन वार प्रदक्षिणाकर उन्हें वंदन - नमस्कार किया । वंदन - नमस्कार करने के बाद उनका नाम गोत्र पूछा और हृदय में धारण किया । इसके पश्चात् वे सब एकत्रित हुए और एकांत स्थान में जाकर परस्पर कहने लगे कि हे देवानुप्रियो ! जिनके दर्शन की श्रेणिक राजा भंभसार इच्छा, स्पृहा, प्रार्थना और अभिलाषा करते हैं तथा जिनके नाम और गोत्र सुनकर श्रेणिक राजा हर्षित और संतुष्ट हो जाते हैं वे धर्म के प्रवर्तक चारों तीर्थों के प्रवर्तन करने वाले, केवलज्ञान से सकल पदार्थ को जानने वाले, केवल दर्शन से समस्त वस्तुओं का साक्षात्कार करने वाले ग्रामानुग्राम विचरते हुए सुख पूर्वक विहार करते हुए राजगृह नगर में पधारे हैं और नगर के बाहर यहाँ गुण शिलक नामक उद्यान में विराजमान है । तथा संयम व तप से अपनी आत्मा को भावित करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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