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________________ ( १३४ ) हुए विचरते हैं तो हे देवानुप्रियो ! हम चले और श्रेणिक राजा को इस प्रिय वृत्तान्त को निवेदन करें। 'आपका कल्याण हो' ऐसा मंगलमय वचन बोलते हुए एक दूसरे के कथन को स्वीकार करते हैं। __इसके अनन्तर जहाँ राजगृह नगर है वहाँ नगर के मध्य में होकर जहाँ श्रेणिक राजा का राजमहल है जहाँ श्री श्रेणिक राजा विराजमान थे-वहाँ आये। ___ वहाँ जाकर उन्होंने हाथ जोड़कर श्रेणिक राजा को जय-विजय के साथ बधाकर कहने लगे-हे स्वामी ! दर्शन करने की आप इच्छा करते हैं वे ही महावीर स्वामी ने नगर के बाहर गुणशिल नाम के उद्यान में पदार्पण किया है। अतः उनके आगमन रूप वृत्तान्त को हम आप को निवेदन करते है-आपका कल्याण हो । ४. हस्तिनापुर की परिषद् तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणापुरे नाम नगरे होत्था-वण्णओ । तस्सणं हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे, एत्थणं सहसंबवणे नामे उज्जाणे होत्था। xxx ॥ ५७ ॥ _तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढेपरिसा निग्गया। धम्मोकहिओ। परिसापडिगया ।। तएणं सा महतिमहालया महच्चपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयम? सोच्चा निसम्म हहतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइनमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता जामेवं दिसं पाउब्भूया तामेवदिसंपडिगया । -भग० शा ११/उ ६ सू ५७, ७४, ८२ उस काल उस समय में हस्तिनापुर नामक नगर था, वर्णन। उस हस्तिनापुर नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण ) में सहस्राम्र नामक उद्यान था। उस काल उस समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। जनता धर्मोपदेश सुनकर यावत् चली गई। इसके पश्चात् वह महती परिषद् श्रमण भगवान महावीर स्वामी से उपयुक्त अर्थ को सुनकर और हृदय में धारण कर हर्षित एवं संतुष्ट हुई और भगवान को वंदना नमस्कार कर चली गई। ५. युगान्तरकृतभूमि-पर्यायान्तरकृतभूमि समणस्स णंभगवओ महावीरस्स दुविहा अंतकडभूभी होत्था, तंजहाजुगंतकडभूमी य परियायतकडभूमी य । जाव तच्चाओ पुरिसजुगाओ जुगंतकडभूमी, चउवासपरियाए अंतमकासी। -कप्प. सू १४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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