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________________ ( ११. ) पलंबमाण-घोलंत भूसण-धरे ससंभम तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्टइ, अन्भुद्वित्ता पायपीढाओ पञ्चोरुहइ, पञ्चोरुहित्ता पाउआओ ओमुअइ । ओमुइत्ता अवहट्ट पंच-राय-ककुहाइं; तं जहा-खग्गं १, छत्तं २, उप्फेसं ३, वाहणाओ ४, बालवीअणं ५, एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ । करेत्ता आयंते घोषखे परम सुइभूए अंजलिमउलियग्ग हत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ट-पयाई अणुगच्छइ सत्तट्ट-पयाई अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेह। वामं जाणु अंचेत्ता दाहिणं जाणु धरणितलंसि साहटु, तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ । निवेसेत्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभिआओ भुभाओ पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता करयल-जाव कटु एवं वयासीxxx नमोऽत्थुणं जाव xxx ठाणं संपत्ताणं । -ओव• सू० २१ तब भंमसार का पुत्र कूणिक, उस प्रवृत्ति-निवेदक से यह बात कान से सुनकर हृदय से धारण कर बहुत प्रसन्न हुआ। श्रेष्ठ कमल के समान नेत्र और मुख विकसित हो गये। (भगवान के आगमन-श्रवण से उत्पन्न हर्षावेश के कारण ) कङ्कण, तुटिय (हाथ के तोड़े) केयूर, ( अंगद भुजबंध) मुकुट, कुंडल और हारसे सुशोभित बना हुआ वक्ष कंपित हो रहा था। लम्बी लटकती हुई माला और हिलते हुए भूषणों के धारक नरेन्द्र ससंभूम (आदर सहित ) जल्दी-जल्दी सिंहासन से उठे, उठकर, पादपीट से (चौकी से) नीचे उतरे । उतर कर पादुकाएँ खोली । पाँच राज चिन्हों को दूर किये। यथा-(१) खड्ग, (२) छत्र, (३) मुकुट, (४) उपानद् (पगरक्खी , जूते) और चामर । एक साटिक उत्तरासंग किया । जल स्पर्श से मैल से रहित अति स्वक्छ बने हुए हस्त-सम्पुट ( अञ्जली ) से कमल की कली के समान आकार वाले हाथों से युक्त ( अर्थात् हाथ जोड़कर ) जिधर तीर्थकर देव विराजमान थे-उधर मुख करके, सात-आठ कदम सामने गये। बायें पैर को संकुचित किया। दायें पैर को धरणितल पर, संकोच कर रखा। और शिर को तीन बार धरती से लगाया। फिर थोड़ा-सा ऊपर उठकर कड़े और तोड़े से स्थिर बनी हुई भुजाओं को उठाकर, हाथ जोड़े और अंजली को सिर पर लगाकर इस प्रकार बोलेकूणिक का भगवान को वंदन नमोऽथुणं समणस्स भगवओ महावीरस्त आदिगरस्स तित्थगरस्स... जाव संपाविउकामस्स ममं धम्मायरियस्स धम्मोपदेसगस्स । वंदामि ण भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ मे ( मे से ) भगवं तत्थगए इहगयं :-ति कटु वंदइ णमंसइ । वंदित्ता णमंसित्ता सीहासण-वर-गए पुरस्थाभिमुहे निसीयइ । निसीइत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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