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________________ ( १११ ) तस्स पचित्तिवाउअस अद्भुत्तरं सयसहस्सं पीइदाणं दलयइ दलइत्ता सक्कारेइ सम्माणेइ । सक्कारिता सम्माणित्ता एवं वयासी - 'जया ण देवाणुपिया | समणे भगवं महाबीरे इहमागच्छेद्दह समोसरिजा, इहेव चंपाए णयरीए बहिया you are अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरेज्जा, तथा णं मम एअमट्ठ निवेदिज्जासि' - तिकट्ट विसजिए | - ओव० सू २१ अरिहंत ( इन्द्रों से पूजित या परम शक्तिमान् अथवा कर्मशत्रु को नष्ट करने वाले ) भगवान्, आदिकर, तीर्थंकर, स्त्रयंसंबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर- पुण्डरीक, पुरुषवर गंधहस्ती, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितंकर, लोकप्रदीप, लोक प्रद्योतकर अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गदाता, शरणदाताजीवनदाता, बोधिदाता, धर्मदाता, धर्मदेशक, धर्मनायक धर्मसारथि, धर्मवर चातुरंत चक्रवर्ती, द्वीप, त्राण-सरण गतिप्रतिष्ठारूप, अप्रतिहत- वर - ज्ञान दर्शन घर, व्यावृत्त छम, जिन, जापक, तिरक, तारक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, सर्वज्ञ - सर्वदर्शी ( समस्त पदार्थों, उनकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवस्थाओं भूत-भविष्य और वर्तमान की सभी अनंतानन्त पर्यायों को विस्तार से और सामान्य रूप से जानने वाले ) । शिव- सभी प्रकार के उपद्रवों से रहित, अचल- स्थिर-नीरोग, अनंत, अक्षय, अव्याबाघ, अपुनरावर्तित सिद्धगति नाम वाले स्थान को प्राप्त (शुद्धात्मा) से नमस्कार हो । श्रमण भगवान् महावीर ( जो कि ) आदिकर, तीर्थंकर ( यावत् ) सिद्धि गति नाम वाले स्थान को पाने के इच्छुक (भावी सिद्ध ) हैं । मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक हैं (उन्हें) नमस्कार हो । यहाँ पर स्थित (मैं) वहाँ पर स्थित भगवान् को वंदना करता हूं । वहाँ पर स्थित भगवान् यहाँ पर स्थित मुझे देखते हैं । वह वंदना नमस्कार करके, पूर्व की ओर मुख रखकर, सिंहासन पर ठीक तरह से बैठा । उस प्रवृत्ति निवेदक को एक लाख आठ हजार ( रजतमुद्रा ) का प्रतिदान दिया । ( श्रेष्ठ वस्त्रादि से ) सत्कार किया । ( आदर - सूचक वचनों से ) सम्मान किया । पुनः इस प्रकार बोला -- 'हे देवानुप्रिय ! जब भ्रमण भगवान महावीर यहाँ आवें - यहाँ समवसरें, इस चंपानगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य में संपमियों के योग्य आवासस्थान को ग्रहण करके, संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरें तब यह सूचना मुझे देना । इस प्रकार कहकर उस प्रवृत्ति निवेदक को विसर्जित किया । चंपा नगरी में भगवान महावीर का पदार्पण तथा लोगों में उनकी चर्चातेणं कालेण ते ण समए णं चम्पाए नगरीए | X Xx | बहुजणो अण्णमण्णस्स एमाइक्खर, एवं भासह, एवं पण्णवेद, एवं परुवेइ - ' एवं खलु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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