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________________ का निषेध, छत्र का निषेध, जूतों का निषेध, भूमिशय्या, फलकशय्या, काठशय्या, केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास, परघर-प्रवेश और लब्धापलब्ध वृत्तिका निरूपण किया है । इसी प्रकार अहंत महापइम भी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए नग्नभाव, मुण्डभाव स्नान का निषेध, दतौन का निषेध, छत्रका निषेध, भूमि-शय्या, फलक-शय्या, काष्ठशय्या, केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास, परघर-प्रवेश और लब्धापलब्ध वृत्ति का निरूपण करेंगे। (अ) से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मिएति वा उद्देसिएति वा मीसज्जाएति वा अझोयरएति वा पूतिए कीते पामिच्चे अच्छेज्जे अणिस? अभिहडेति वा कंतारभत्तेति वा दुभिक्खभत्तेति वा गिलाणभसेति वा वदलियाभत्ते ति वा पाहुणभत्तेति वा मूलभोयणेति वा कंदभोयणेति था फलभोयणेति वा बीयभोयणेति वा हरिभोयणेति वा पडिसिद्ध । ___ एचामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मियं वा उहेसियं वा मीसजायं वा अज्ज्ञोयरयं वा पूतियं कीतं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसह अभिहडं वा कतारभत्तं वा दुब्भिक्खभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वद्दलिया भत्तं वा पाहुणभत्तं वा मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरितभोयणं वा पडिसेहिस्सति । ठाण° स्था ह/सू ६२ आर्यो ! मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए आधाकर्मिक, औदेशिक, मिश्रजात, अध्यवतर प्रतिकर्म, क्रीत, प्रामित्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, बाद लिकाभक्त, प्राधूर्ण भक्त, मूलभोजन, कंदभोजन, फलभोजन, बीजभोजन और हरितभोजन का निषेध किया है। इसी प्रकार अर्ह महापद्म भी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए आधाकर्भिक, ओदेशिक, मिश्रजात, अध्यवतर, पूतिकर्म, क्रीत, प्रामित्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तार भक्त, दुर्भिक्ष भक्त, ग्लान भक्त, बालिका भक्त, प्राधूर्ण भक्त, मूल भोजन, कंद भोजन, फल भोजन, बीज भोजन और हरित भोजन का निषेध करेंगे। से जहाणामए अजो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिकमणे अचेलए धम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेति अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहब्वतियं सपडिक्कमणं अचेलगं धम्मं पण्णवेहिति । -ठाण० स्था ६/६२/८७१ आयो ! मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए प्रतिक्रमण और अचेलता युक्त पाँच महावतात्मक धर्म का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए प्रतिक्रमण और अचेलता युक्त पाँच महावतात्मक धर्म का निरूपण करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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