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________________ ( ८६ ) से जहाणामए अज्जो! मए समणोवासगाणं पंचाणुव्वतिए सत्तसिक्खावत्तिए-दुवालसविधे सावगधम्मे पण्णत्ते । एवामेव महापउमेवि अरहा समणोषासगाणं पंचाणुष्वतियं-सत्तसिक्खावत्तियं-दुवालसविधं सावगधम्म पण्णवेस्सति । -ठाण० स्था ६/६२/८७१ आर्यो ! मैंने पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रत-इस बारह प्रकार के श्रावक-धर्म का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाबत- . इस बारह प्रकार के श्रावक धर्म का निरूपण करेंगे। (ट) से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं सेजातरपिंडेति षा रायपिंडेति वा पडिसिद्ध । एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंड वा रायपिंडं वा पडिसेहिस्सति । से जहाणामए अज्जो! मम नव गणा एगारस गणधरा! एवामेव महापउमस्सवि अरहतो णव गणा एकारस गणधरा भविस्संति। -ठाण० स्था ६/६२/८७१ आर्यो ! मैंने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातरपिंड और राजपिंड का निषेध किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातर पिंड और राजपिंड का निषेध करेंगे। __ आर्यों मेरे ! नौ गण और ग्यारह गणधर है । इसी प्रकार अहंत महापद्म के भी नौ गण और ग्यारह गणधर होगे। .१२ भगवान महावीर के विशिष्ट सिद्धांत .१ चित्त-समाधि अजोति समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतित्ता-एवं खलु अजो! निग्गंथाणं वा निग्गंथीणं वा x x x इमाई दस वित्तसमाहिठाणाई असमुप्पण्णपुव्वाई समुप्पज्जेज्जा, तंजहा १. धम्मचिंता वा से असमुप्पण्णपुब्वा समुप्पज्जेज्जा सव्वं धम्म जाणित्तए। २. सुमिणदसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पज्जेज्जा अहातच्चं सुमिणं पासित्तए । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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