SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८३ ) आर्यों! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन दंडों- मनोदंड, वचनदंड, कायदंड का निरूपण किया है । इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दंडों- मनोदंड, वचनदंड और कायदंड का निरूपण करेंगे । (घ) से जहाणामए अजो ! मए समणाण निग्गंथाण वत्तारि कसाया पण्णत्ता, तंजहा कोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए । एवमेव महापमेचि अरहा समणाण णिग्गंथाण चत्तारि कसाए पण्णवेहिति तं जहा- कोहकसायं, माणकसायं, मायकसायं, लोभकसायं । (च) से जहा णामए अजो ! मए समणाण' णिग्गंथाण पंच कामगुणा पण्णत्ता, तंजहा सद्दे, रूवे, गंधे, रसे, फासे । एषामेव महापडमेचि अरहा समणाणं णिग्गंथाण पंचकामगुणे पण्णवेहिति, तंजहा- सहं, रूवं, गंधं, रसं, फासं 1 - ठाण० स्था ६ / सू ६२ / पृ० ८६८ कषायों - क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाइसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमणमानकषाय, मायाकषाय और लोभकषार्यो आर्यों। मैंने श्रमण-निग्रंथों के लिए चार ! कषाय और लोभकषाय का निरूपण किया है । निर्ग्रन्थों के लिए चार कषायों - क्रोधकषाय, का निरूपण करेंगे । आर्यो ! मैंने श्रमण निग्रंथों के लिए पाँच कामगुणों - शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श - का निरूपण किया है। इसी प्रकार अर्हतु महापद्म भी श्रमण निग्रंथों के लिए पाँच कामगुणों— शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श का निरूपण करेंगे । (छ) से जहाणामए अजो ! मए समणाण' निग्गंथाण छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तंजहा - पुढबिकाइया, आउकाइया, ते काइया, चाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया । एवमेव महापमेवि अरहा समणाण निग्गंथाण छज्जीवणिकाए पण्णवेहिति, तंजहा - पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइए, तसकाइए । Jain Education International For Private & Personal Use Only · -ठाण० स्था ६ / सू ६२ / ८६८ www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy