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________________ ( ४५ ) २३. भगवान् महावीर की सेवा में यक्षिणी जक्खीओ चक्केसरिरोहिणि पण्णत्तिवज सिंखलया। ... वज्जंकुसा य अप्पदिचक्केसरिपुरिसदत्ता य॥९३७ ॥ मणवेगाकालीओ तह जालामालिणी महाकाली । गउरीगंधारीओ वेरोटी सोलसा अणंतमदी ॥ ९३८ ॥ माणसिमहमाणसिया जया य विजयापराजिदाओ य। बहुरूपिणिकुंभंडी पउमासिद्धायिणीओ ति ॥ ९३९ ॥ -तिलोप० अधि ४/गा ६३७ से ६३६ चक्रेश्वरी यावत् सिद्धायिनी-ये यक्षिणियाँ भी क्रमशः ऋषभादिक चौबीस तीर्थकरों के समीप रहा करती है । २४. असंख्यात देव-देवियाँ संख्यात तियंच(क) देवा देव्योऽप्यसंख्यातास्तियंचः कृतसंख्यकाः।। -उत्तपु०/पर्व ७४/श्ले ३८० (ख) देवा देव्यस्त्वसंख्याताः सेवन्ते तत्पदाम्बुजौ । दिव्यैः स्तुतिनमस्कारपूजाद्युत्सवकोटिभिः ॥२१५॥ -वीरवर्धच० अधि १६/श्लो २१५ असंख्यात् देव देवियां थी। असंख्यात देव-देवियां भगवान के पादारविंदों की दिव्यस्तुति, नमस्कार पूजा और करोड़ों प्रकार के उत्सवों से सेवा करते थे। (ग) सुरदेवहिं मुक्क-संख-गइहिं । -वीरजि• संधि २ कड ८ (घ) देवीदेवसमूहा संख्यातीदा हुवंति णरतिरिया। संखेजा एक्केषके तित्थे विहरंति भत्तिजुत्ता य॥ .-तिलोप० अधि ४/गा ११८४ प्रत्येक तीर्थकर के तीर्थ में-भगवान महावीर के तीर्थ में असंख्यात देव-देवियों के समूह और संख्यात मनुष्य एवं तिथंच जीव भक्ति से संयुक्त होते हुए विहार किया करते हैं । २५. दीक्षा-वृक्षणिक्खंता असोगतरुतले सव्वे । -सप्ततिशत०६८द्वार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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