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________________ ( ४४ ) ७-कामद्धिगण । ८-मानवगण । ६-कोटिकगण । एक सामाचारी का पालन करनेवाले साधु-समुदाय को गण कहा जाता है। यह विषय मूलतः कल्प सूत्र में प्रतिपादित है-- १-गोदास गण-प्राचीन गोत्री आर्य भद्रबाहु स्थविर के चार शिष्य थेगोदास, अग्निदत्त, यज्ञदत्त और सोमदत्त । गोदास काश्ययगोत्री थे। उन्होंने गोदास गण की स्थापना की। इस गण से चार शाखाएँ निकलीं-तामलिप्तिका, कोटिवर्षिका, पांडवर्द्धनिका, दासीखर्व टिका । २-उत्तर बलिस्सगण-माठर गोत्री आर्य संभृतिविजय के बारह शिष्य थे। उनमें आर्य स्थूलभद्र एक थे। उनके दो शिष्य हुए -आर्य महागिरि और आर्य सुहस्ती। आर्य महागिरि के आठ शिष्य हुए, उनमें स्थविर उत्तर और स्थविर बलिस्सह दो है। दोनों के संयुक्त नाम से 'उत्तरबल्लिस्सह' नाम के गण की उत्पत्ति हुई। - ३-उद्दे हगण-आर्य सुहस्ती के बारह अंतेवासी थे। उनके स्थविर रोहण भी एक थे। वे काश्यय गोत्री थे। इनसे उद्देहगण भी उत्पत्ति हुई । ४---चारण गण-स्थविर श्रीगुप्त भी आर्य सुहस्ती के शिष्य थे। वे हारित गोत्र के थे। इनसे चारण गण की उत्पत्ति हुई । ५-- उडुपाटित गण-स्थविर जयभद्र आर्य सुहस्ती के शिष्य थे। वे भारद्वाज गोत्री थे। इनसे उडुपाटितगण की उत्पत्ति हुई । ६-वेशपाटितगण-स्थविर कामिठ्ठी आर्य सुहस्ती के शिष्य थे। वे कुंडिल गोत्री थे। इनसे वेशपाटितगण की उत्पत्ति हुई । ७-कामद्धि गण-यह वेशपाटितगण का एक कुल था । ८-मानव गण-आर्य सुहस्ती के शिष्य ऋषिगुप्त ने इस गण की स्थापना की वे वाशिष्ट गोत्री थे। १-कोटिक गण-स्थविर सुस्थित और सुप्रतिबद्ध गण से इस गण की उत्पत्ति हुई । प्रत्येक गण की चार-चार शाखाएँ और उद्देह आदि गणों के अनेक कुल थे। इनकी विस्तृत जानकारी के लिए देखें । -कल्पसूत्र २०६-२१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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