SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४६ ) सभी तीर्थंकर अशोक वृक्ष के नीचे प्रत्रजित हुए । २६. दीक्षा के समय तप सुमइत्थ णिच्च भत्तेण णिगाओ वासुपूज पासो मल्ली वि य अमेण सेसाउ उत्थे छट्ठेणं ॥ सुमतिनाथ स्वामी नित्य भक्त से और वासुपूज्य स्वामी उपवास तप से दीक्षित हुए । श्री पार्श्वनाथ स्वामी और मल्लिनाथ स्वामी तेला तप कर दीक्षाली । शेष बाइस तीर्थ - करों ने बेला तप पूर्वक प्रत्रज्या ग्रहण की । -प्रव० सा० ४२ द्वार २७. दीक्षा-परिवार एगो भगवं वीरो पासो मल्ली य तिहिं तिहिं सहि । भगवंपि वासुपुजो छहि पुरिसस एहि णिक्खंतो । उग्गाणं भोगाणं रायण्णाणं व खत्तियाणं थ। उहि सहस्सेहिं उसहो सेसा उ सहस्स परिवारा ॥ भगवान महावीर ने अकेले दीक्षा ली। श्री पार्श्वनाथ और मल्लिनाथ ने तीन-तीन सौ पुरुषों के साथ दीक्षा ली । भगवान् वासुपूज्य ने ६०० पुरुषों के साथ गृहत्याग किया । भगवान् ऋषभ देव ने उग्र, योग, राजन्य और क्षत्रिय कुल के चार हजार पुरुषों के साथ दीक्षा ली। शेष उन्नीस तीर्थंकर एक-एक हजार पुरुषों के साथ दीक्षित हुए । - प्रव० सा० द्वार ३१ २८. स्वप्न : श्रयं कुंभं ॥ सुविणाई ॥ गय वसह सीह अभिसेयं दाम ससि दिणयरं पउमसर सागर विमाण भवण रयणऽग्गि णरय उवद्वाणं इह भवणं सग्गच्चुयाण उ वीससह सेस जणणी, नियंसु ते हरि विसह गया | विमाणं । Jain Education International - सप्ततिशत स्थान प्रकरण १८ / द्वार गा ७०-७१ नरक से आये हुए तीर्थंकरों की माताएँ चौदह स्थानों में भवन देखती है एवं स्वर्ग से आये हुए तीर्थंकरों की माताएँ भवन के बदले विमान देखती है । For Private & Personal Use Only भगवान महावीर स्वामी की माता ने प्रथम सिंह का, भगवान् ऋषभदेव की माता ने प्रथम वृषभ का एवं शेष बाइस तीर्थंकरों की माताओं ने प्रथम हाथी का स्वप्न देखा था । www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy