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________________ ( ४३ ) (ख) xxx तियंचः कृत्संख्यकाः -उत्तपु० पर्व ७४/श्लो ३८०/पूर्वार्ध भगवान के संख्यात तिर्यंच सेवा करनेवाले थे ( श्रावक ) (ग) संखेजएहिं तिरिएहिं सहुँ । परमेट्टि देव सोक्खाइँ महुँ ॥ -वीरजि० संधि २/कड ८ (घ) (णरतिरिया) संखेजा एक्केक्के तित्थे विहरंति भत्तिजुत्ताय । -तिलोप० अधि ४/गा १९८४ प्रत्येक तीर्थंकर के तीर्थ में संख्यात तिथंच जीव भक्ति से संयुक्त होते हुए विहार किया करते हैं । अतः श्रमण भगवान् महावीर के संख्यात संशी तियच पंचेन्द्रिय श्रावक थे। २२. भगवान् महावीर के नौ गण (क) समणस्स णं भगवतो महावीरस्स णव गणा हुत्था, तंजहा गोदासगणे, उत्तरबलिस्सहगणे, उद्देहगणे, चारणगणे, उद्दवाइयगणे, विस्सवाइयगणे, कामड्ढियगणे, माणवगणे, कोडियगणे। टीका-गणाः-एकक्रियावाचनानां साधूनां समुदायाः, गोदासादीनि च तन्नामानीति। -ठाण० स्था ६/सू २६ (ख) थेरस्स णं अजभद्दबाहुस्स पाईणगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी अहावचा अभिण्णाया होत्था, तंजहा-थेरे गोदासे थेरे अग्गिदत्ते थेरे जण्णदत्ते थेरे सोमदत्ते कासवगोत्तेणं । थेरेहितो णं गोदासेहितो कासवगोत्तेहितो एत्थणं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्सणं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिज्जति, तंजहा-तामलित्तिया, कोडीवरिसिया पोंडवद्धणिया दासीखब्बडिया। -कप्प० सू २०७ श्रमण भगवान महावीर के नौ गण थे१-गोदास गण, २-उत्तर बल्लिस्सहगण, ३-उद्देहगण, ४-चारणगण ५-उद्दवाहयगण, [ उडुपाटितगण ] ६-विस्सवाइय गण [ वेशपाटितगण ] । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016034
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1988
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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