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वर्धमान जीवन - कोश
. ५१ गौतम गणधर के प्रश्न
नहाणंभंते ! वयं एयमट्ठ जाणामो-पासामो तहाणं अणुत्तरोववाइया वि देवा एयमट्ठ जाणंति पासंति ?
हंता गोयमा ! जहाणं वयं एयमट्ठ जाणामो-पासामो तहाणं अणुत्तरोववाइया वि देवा एयमट्ठ जाति पासंति ।
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सेकेणट्ठेणं जाव पासंति ? गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं अनंताओ मणोदव्ववग्गणाओ लद्वाओ पत्ताओ अभिसमण्णागाओ भवति, तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव पासंति ।
- भग० श १४ / उ ७ सू ७८, ७६ हाँ गोतम ! जिस अपन दोनों पूर्वोक्त बात को जानते देखते हैं, उसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देव भी इस बात को जानते देखते हैं ।
अनुत्तरौपपातिक देवों को अवधि ज्ञान की लब्धि से मनोद्रव्य की अनन्त वर्ग्रणायें ज्ञेय रूप से उपलब्ध है, प्राप्त है, अभिमन्वागत हुई है । इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा गया है कि यावत् अनुत्तरौपपातिक देव जानते-देखते हैं । नोट - भगवान् के कथन से आश्वासन प्राप्त कर गौतम स्वामी ने दूसरा प्रश्न किया कि हे भगवन् ! भविष्यकाल में अपने दोनों तुल्य हो जायेंगे । यह बात आप तो केवल ज्ञान से जानते हैं और मैं आपके कथन से जानता हूं किन्तु क्या अनुत्तरौपपातिक देव भी यह बात जानते-देलते हैं ? इस प्रश्न का आशय यह है कि अनुत्तरौपपातिक देव विशिष्ट अवधि ज्ञान के द्वारा मनोद्रव्य वर्गणा को जानते-देखते हैं । अयोगी अवस्था में अपन दोनों का निर्वाण-गमन का अनिश्चय करते हैं इस अपेक्षा से यह कहा गया है कि अपन दोनों की भावी तुल्य अवस्था रूप अर्थ को जानते और देखते हैं । .५२ परिनिर्वाण के दिन - भगवान् महावीर ने गौतम गणधर को देवशर्मा को
प्रतिबोधार्थ भेजा—
एवमाख्याय समवसरणान्निर्ययौ प्रभुः । हस्तिपालनरेन्द्रस्य शुल्कशालां जगाम च ॥ २१७५। स्वामी तद्दिनयामिन्यां विदित्वा मोक्षमात्मनः । दध्यावहो गौतमस्य मयि स्नेहो निरत्ययः || २१८|| स एव केवलज्ञानप्रत्यूहोऽस्य महात्मनः । स च्छेद्य इति विज्ञाय निजगादेति गौतमम् ॥ २१६ ॥ देवशर्मा द्विजो ग्रामे परस्मिन्नस्ति सत्वया । बोधं प्राप्स्यति तद्धेतोस्तत्रत्वं गच्छ गौतम ! ||२२|| यथाऽऽदिशति मे स्वामीत्युदित्वा च प्रणम्य च । जगाम गौतममुनिस्तथाचक्रे प्रभोर्वचः ॥ २२२ ॥ - त्रिशलाका० पर्व १० / सर्ग १३
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भविष्य बाकी हकीकत कहकर श्रीवीर प्रभु समयसरण में से बाहर निकले और हस्तिपाल राजा की शुल्क (दान लेने की ) शाला में गये । उस दिन ( कार्तिक कृष्णा अमावश्या) की रात्रि में हो स्वयं का मोक्ष जानकर भगवान् महावीर ने विचार किया - अहो ! गौतम का स्नेह हमारे पर अत्यन्त है और वही उसको केवल ज्ञान की उत्पत्तिमें अन्तराय करता है । इस कारण उस स्नेह को हमारे से छेदन हो जाना चाहिए। ऐसा विचार कर उन्होंने गौतम को कहा - गौतम ! यहाँ से नजदीक के ग्राम में देवशर्मा नामक ब्राह्मण रहता है । वह तुम्हारे द्वारा प्रतिबोधित होगा । इसलिए तुम वहाँ
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