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________________ २६० वर्धमान जीवन-कोश .८ भगवान् गौतम का प्रत्युत्तर सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-णो खलु आउसो ! अस्माकं वत्तव्वएणं तुम्भं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं दंडे णिक्खित्ते भवइ । कस्स णं तं हे? संसारिया खलु पाणा-तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायति । थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववजंति। थावरकायाओ विमुच्चमाणा सव्वे तसकायंसि ज्ववज्जति। तेसिंच णं तसकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं अघत्तं । ते पाणा वि वुच्चंति, ते तसा वि वुचंति, ते महाकायं ते चिरटिइया। ते बहुयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स सुपच्चक्खायं भवइ। ते अप्पयरगा पाणा जेहिं समणोवासगस्स अपच्चक्खायं भवइ । से मया तसकायाओ उवसंतस्स उवट्ठियस्स पडिविरयम्स ज णं तुम्भे वा अण्णोवा एवं वयह-“णत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणोवासगस्स एगपाणाए वि दंडे णिकि त्ते। अयं पि भे उवएसे णो णेयाउए भवइ। ... -सूर० श्रु / /सू १६ भगवान गौतम-हमारे वक्तव्य से यह (तुम्हारा कथन) सिद्ध नहीं होता। और तुम्हारे अनुप्रवाद (मन) से तो यह पर्याय संभव है जिसमें श्रमणोपासक सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्वकी हिंसासे रहित हो सकता है। कारणकि -[जैसा कि तुम कहते हो] त्रसकाया से निकलकर सभी जीव स्थावर हो जाते हैं और स्थावर कायासे निकल कर सभीत्रस तो उनके लिए त्रसकाया में उत्पन्न जीव हिंसाके अयोग्य हो जाते हैं। वे प्राणी, त्रस, महाकाय और लम्बी स्थिति कहे जानेवाले जीव बहतर हो जाते हैं। जिनकी हिमा करने के श्रमणोपासक के प्रत्याख्यान होते हैं और वे प्राणी अल्पतर हो जाते हैं जिनकी हिंसा क ने के श्रमणोपासक के प्रत्याख्यान नहीं है। ऐसे उन महान श्रसकाया की (हिंसा) से उपशान्त, उपस्थित और प्रतिविरत के लिए तुम और दूसरे जा कहते हो कि श्रमणोपासक की ऐसी कोई पाय-अवस्था नहीं है जिसमें वह एक भी प्राणी को भी हिमा से बच सके--तो यह न्यायसंगत नही है। .६ श्रमण - दृष्टांत(क) भगवंच णं उदाहु णियंठा खलु पुच्छियव्या-आउसंतो ! णियंठा ! इह खलु संगइया मणुम्सा भवति। तेसिंचणं एवं बुत्तपुव्वं भवइ-जे इमे मुंडे भवित्ता अगागओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसिं णं आमरणंताए दडे णिक्वित्ते। जे इमे अगारमावसति, पयसिं णं आमरणंताए दंडे णो । णिक्वित्ते। 'कई च णं समणे, जाव वासाई चउपचमाइ छहसम्माई अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दृइज्जित्ता' अगारं वएज्जा। हंता वएज्जा। तस्स णं तमगाग्त्थं वहभाणस्स से पच्चकवाणे भग्गे भवड णेति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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