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________________ वर्धमान जीवन-कोश २८६ t 1 भगवान् गौतम - आयुष्मान् उदक जिसे तुम प्रसभूत प्राणी कहते हो उसे हम प्रेम कहते हैं और जिसे हम यस प्राणी कहते हैं उसे तुम सभूत प्राणी कहते हो इस प्रकार दोनों शब्द ममान है एकार्थी है फिर आयुष्मान् ? आप क्यों "भूत प्राणी" यह सुप्रणीतवर (शुद्ध) और बम प्राणी यह दुष्प्रणीततर (अशुद्ध) मानते हैं? एक का प्रतिक्रोश ( भर्त्सना) करते हैं और एक का अभिनन्दन ? आपका यह भेद भी न्यायसंगत नहीं है। कई मनुष्य हैं जो श्रमणों से यह कहते हैं - हम इतने समय नहीं है कि मुण्डिन होकर गृहवानी से अनगार बन जायें । किन्तु हम क्रमशः गुप्त साधु बनेंगे। वे यही विचार करते हैं वे यही विचार करते हैं - यही विचार रखते हैं—यही विचार प्रकट करते हैं कि अभियोग को छोड़कर गाथापति चोर ग्रहण विमोक्षण न्यायसे त्रम प्राणियों की हिमा करना छोड़ दें। उनके लिए वह म कुशल रूप है। तसा वि त्वंति तसा तससंभारकडेणं कम्मुणा णामं चणं 'अभूवग्य भवइ 'तसाध्य चणं पलिक्खीणं भवइ' तसकायट्टिइया ते तओ आउयं विष्पजहंति, ते तओ आउयं विप्पजहित्ता थावरत्ताए पच्चायति । थावग विदुच्चति श्रावरा थावरसंभारकणं कम्मुणा णामं च णं अभूवगयं भव। 'थायगउयं चणं पतिक्षीण भवइ', थावरकायट्टिया से तओ आयं विजति ते तओ आउयं विप्यनहित्ता भुज्जो पारलोइयत्ताए पच्चायंति ते पाणा बिच्चति. ते तसा वि च्वंति, ते महाकाया ते चिरट्टिइया । .9 - सूय० श्रु २/अ ७ / सू १४ सजीव भी नाम कर्म के अनुभव करने से बस कहे जाते हैं। त्रस आयु जब परिक्षीण हो जाती है तब वे काया में स्थित जीव वहां से वह आयु छोड़ देते हैं। वहां से वे आयु छोड़कर ( ही ) वे स्थावर अवस्था में आते हैं । स्थावर जीव भी स्थावर नाम कम के भोगने से स्थावर कहे जाते हैं स्थावर आयु जब परिक्षीण हो जाती है तब स्थावर काया में रहने वाले जीव वहां से आयु छोड़ देते हैं - वहां से वे आयु छोड़कर (ही) पुनः पारलौकिकता के लिए । - जाते हैं। वे प्राणी भी कहे जाते हैं सभी कहे जाते हैं। वे महाकाव भी होते हैं—म्बी आयु वाले भी होते हैं। उदय पेढाल पुत्र का सपक्ष स्थापना करसणं तं हेडं । सवाय उद पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी उसंतो ! गोयमा ! णत्थि णं से फेड परियाए जंसि समणोवासगस्स 'एगपाणाए वि इंडे णिक्खित्ते 1 संसारिया खलु पाणा- थावरा वि पाणा तसत्ता पच्चायति । पश्चायति। थावरकायाओ विप्नमुश्यमाणः सव्ये तसकायसि विप्यमुरचमाणा सच्चे थावर काय सि उववज्जति । तेसिंच णं थावरकार्यंसि उववण्णाणं ठाणमेयं धत्तं । 1 - Jain Education International - सूय० श्रु २ / अ ७ / सू १४ उदक पेढालपुत्र - आयुष्मान् गौतम ! ऐसी कोई भी पर्याय — अवस्था नहीं है, जिसमें श्रमणोपासक एक भी जीव की हिंसा विरति रख सके। कारण कि प्राणियों को अवस्था में परिवर्तन होता रहता है । स्थावर काय से निकल कर सभी प्राणी त्रम हो जाते हैं और उसकाया से निकल कर सभी प्राणी स्थावर हो जाते हैं। तब वे स्थावर काया में उत्पन्न जीव उनके लिए हिंसा के योग्य हो जाते हैं। For Private & Personal Use Only तसा वि पाणा धावरत्ताए उवयञ्जति । तमकायाओ www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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