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________________ वर्धमान जीवन-कोश २२५ तदनन्तर उस भगवान् गौतम ने वाणिज्यग्राम नगर में भिक्षाचर्या के लिए भ्रमण करते हुए यथापर्याप्त भत्तपान सम्यग् रूप से ग्रहण किया, ग्रहण करके वाणिज्यग्राम नगर से निकले। निकलकर के जब वे कोल्लाक सन्निवेश के पास से जा रहे थे तो बहुत से मनुष्यों को यह कहते हुए सुना, बहुत मनुष्य परस्पर इस प्रकार कह रहे थे-'हे देवानुप्रियो । इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर का शिष्य आनन्द नामक श्रावक पौषधशाला में अपश्चिम मारणांतिक संलेखना किये हुए यावत् मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए विचर रहा है।' .३ गौतम का आनन्द के पास पहुँचना : ___ तए णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झत्थिय ४-"तं गच्छामि णं आणंदं समणोवासयं पासामि ।” एवं संपेहेइ, संपेहित्ता नेणेव कोल्लाए सन्निवेसे जेणेव आणंदे समणोवासए. जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ। -उवा० अ १/सू ७३ अनेक मनुष्यों से यह बात सुनकर गौतम स्वामी के यह विचार आया कि मैं इधर का उधर ही जाऊँ और आनंद श्रमणोपासक को देखू । यह विचारकर वे कोल्लाक सन्निवेश में स्थित पौषधशाला में बैठे हुए आनंद श्रावक के पास आये। .४ आनंद ने गौतम स्वामी को अपने पास आने का निवेदन किया : तए णं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ट जाव हियए भगवं गोयमं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-“एवं खलु भंते ! अहं इमेणं ओरालेणं जाव धम्मणिसंतए जाए, नो संचाएमि देवाणुप्पियस्स अंतियं पाउब्भवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाए अभिवंदित्तए, तुब्भेणंभंते ! इच्छाकांरेणं अणभिओगेणं इओ चेव एह जा णं देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पाएसु वंदामि नमसामि । -उवा० अ १/सू ७४ तदनन्तर उस आनन्द समणोपासक ने भगवान् गौतम को आते हुए देखा, देखकर हृष्ट, तुष्ट यावत् प्रसन्न हृदय होकर भगवान् गौतम को वंदन-नमस्कार किया। वंदन नमस्कार करके इस प्रकार कहा-“हे भगवान् ! इस प्रकार में इस उदार तपस्या से यावत् धमनियों से व्याप्त हो गया हूँ, अतः देवानुप्रिय के पास में आकर तीन बार मस्तक से पैरों को वंदना करने में समर्थ नहीं हूँ।" हे भगवन् ! आप ही इच्छापूर्वक और बिना किसी दबाव के यहाँ पधारिए। जिससे मैं देवानुप्रिय को तीन बार मस्तक द्वारा चरणों में वंदना-नमस्कार करू। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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