SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२४ वर्धमान जीवन-कोश भायणं-वत्थाई पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाई वत्थाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी–“इच्छामि णं भांते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए [समाणे] छट्टक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्चनीय मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडितए।” “अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबन्धंकरेह” ॥ -उवा० अ १/सू ७० तदनन्तर भगवान् गौतम ने षष्ठक्षपणा के अर्थात् बेला उपवास के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय किया, दूसरी पौरुषी में ध्यान किया, तीसरी पौरुषी में शीघ्रता रहित चपलता रहित असंभ्रांत होकर मुखवस्त्रिका को प्रतिलेखना की, प्रतिलेखना करके पात्र और वस्त्रों की प्रतिलेखना की। प्रतिलेखना करके पात्र-वस्त्रों का प्रमार्जन किया। प्रमार्जन करके पात्रों को उठाया। उठाकर जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे-वहाँ आये। आकर श्रमण भगवान् महावीर को वंदना-नमस्कार किया। वंदना-नमस्कार करके इस प्रकार कहा-"भगवन् ! आपकी अनुमति प्राप्त होने पर बेला पारणा के लिए वाणिज्यग्राम नगर में उच्च-नीच और मध्यम वुलों में गृह-समुदानी-सामूहिक घरों में भिक्षाचर्या के लिए पर्यटन करना चाहता हूँ।" भगवान् ने उत्तर दिया- "हे देवानुप्रिय ! जैसे तुमको सुख होविलम्ब न करो।" (ख) तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ दूइपलासाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतर पडिलोयणाए दिट्ठीए पुरओ रियं सोहेमाणे-सोहमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्चनीयमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडइ।। उवा० अ १/सू ७१ तदन्तर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर से अनुमति मिल जाने पर श्रमण भगवान् महावीर के पास से दूतिपलाश चैत्य से निकले। निकलकर बिना शीघ्रता किये चपलता रहित-असंभ्रांत होकर अर्थात् युगपरिमाण अवलोकन करनेवाली दृष्टि से आगे की ओर ईर्या का शोषन करते हुए-जहाँ वाणिज्यग्राम नगर था, वहाँ पहुँचे । पहुँचकर वाणिज्यग्राम नगर में उत्तम, मध्यम, नीच कुलों में गृह समुदानी भिक्षाचर्या के लिए भ्रमण करने लगे। २ गौतम द्वारा आनंद की चर्चा-विषयक समाचार का श्रवण : तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे, जहा पण्णत्तीए तहा जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापज्जत्तं भत्तपाणं पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेत्ता वाणियगामाओ नयराओ पडिणिग्गच्छइ, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सन्निवेसस्स अदूरसामंतेणं वीइवयमाणे, बहुजणसई निसामेइ, बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ ४-“एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी आणंदे नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम जाव अणवकखमाणे विहरइ । --उवा० अ १/सू ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy