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________________ वर्धमान जीवन-कोश १८७ (ख) उसभाइ-जिणिंदाणं सब्वेसिं गणहरे य थेरे य। पढमाणुओगभणिया अहभणियो वीरनाहस्स ॥२॥ नमिऊण महावीरं सह सुयदेवीए गणहरे थुणिमो॥ देसाओ (ऊ)-जणय-जणणी-कम-नामत्त्थएण सुय-विहिणा -धर्मोप० पृ० २२६ .१८ गणधरों का श्रुत : धम्मोवाओ पवयणमहवा पुवाइं देसया तस्स । सव्वजिणाण गणहरा चोइसपुवी उ ते तस्स -आव० निगा २६२ टीका-धर्मोपायो नाम प्रवचनं, तदन्तरेण धर्मास्यासंभवात्, अथवा पूर्वाणि, तस्य-धर्मोपायस्य देशकाः सर्वजिनानां गणधराः, तेषां मूलसूत्रकर्तृत्वात् , अथवा ये यस्य तीर्थकृत श्चतुई शपूर्विणस्ते धर्मोपायस्य देशकाः, पूरिपूर्णश्रुततया तेषां यथावस्थितवस्तुदेशकत्वात् । गणधर मूलसूत्र के कर्ता होते हैं । भगवान महावीर के ग्यारह गणधर थे। ये गणधर धर्मोपाय के देशक होते हैं। धर्म के उपाय का नाम प्रवचन है। उसके बिना धर्म संभव नहीं है। गणधर चतुर्दशपूर्वधारी होते हैं। वे परिपूर्णश्रत के एक देश को उपदेशित करते है। .१६ गणधर और तीर्थ तित्थं च सुहम्माओ निरवच्चा गणहरा सेसा । -आव० निगा ५६५ मलय टीका- x x x तथा तीर्थं सुधर्मात्-पञ्चमात् गणधरात् जातं, यतो निरपत्याः-शिष्य रहिताः शेषाः इन्द्रभूत्यादयो गणधराः। चंकि वर्धमान तीर्थंकर के परिनिर्वाण होने के पश्चात् पंचम गणधर सुधर्मा पाट पर विराजमान हुए थे अतः गणधरों में सुधर्मा गणधर से तीर्थ की उत्पत्ति हुई परन्तु शेष गणधरों से नहीं। .२० गणधरों की प्रमुखता : एक्कारसवि गणहरे पवायए पवयणस्स वंदामि। सव्वं गणहरवंसं वायगवंसं पवयणं च ॥२॥ . -आव० निगा २ टीका- एकादशेति संख्यावाचकः शब्दः, अपिः समुच्चये, अनुत्तरं ज्ञानदर्शनादिधर्मगणं धारयन्तीति गणधर स्तान , प्रकर्षेण प्रधाना आदौ वा वाचकाः प्रवाचकास्तान , कस्य प्रवाचकाः ? प्रवचनस्य-द्वादशाङ्गस्य, वन्दे, एवं तावत् मूलगणधरवन्दनं कृतं, तथा सर्व-निरवशेष गणधरा-xxx । तीर्थकृतो मूलगणधराश्च वन्द्याः- x x x उच्यते, इह यथा अर्थवक्तारोऽर्हन्तो वन्द्याः सूत्रवक्तारश्च गणधरास्तथा x x ४ । भगवान के गौतमादि ग्यारह गणधर थे । अनुत्तर ज्ञानदर्शनादि धर्मगण को गणधर धारण करते हैं। तीर्थकृत मूल गणधर होते है। अरिहंत भगवान अर्थ को कहते है उसे सूत्ररूप में गणधर गंथते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016033
Book TitleVardhaman Jivan kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1984
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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