SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 59 ) . अणुव्रत एक पेड़ है। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान, अहिंसा समवाय ये सब उस पेड़ की शाखा-प्रशाखाएं हैं। एक ही जड़ से अलग-अलग प्रकार के रंग निकल रहे हैं। योग वर्तमान का विश्वव्यापी शब्द है। इस दृष्टि से प्रेक्षा के साथ योग शब्द का प्रयोग हो गया। जैन दर्शन में मूलतः योग और ध्यान अलग-अलग नहीं है। मूलतः सब जुड़े हुए हैं । ___ अस्तु जैन सिद्धांत कोश के रचयिता तथा सम्पादक श्री जिनेन्द्रवर्णी का जन्म १४ मई १९२२ को पानीपत के सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व. श्री जयभवानजी जैन एडवोकेट के घर हुआ। जीव के भावों का निमित्त पाकर 'कर्म' नामक एक सूक्ष्म जड़ द्रव्य जीव के प्रदेशों में एक क्षेत्रावगाही होकर स्थित हो जाता है, वहाँ जीत्र का वह भाव तो भाव कम कहलाता है और उसके निमित्त में जो सूक्ष्म जड़ द्रव्य उसमें प्रविष्ट होता है वह द्रव्य कर्म कहा जाता है। द्रव्य कर्म जीव के भावों को मापने का एक यन्त्र मात्र है। ___मूलभूत पदार्थ परमाणु है। किसी भी दृष्ट पदार्थ को कल्पना द्वारा तोड़तेतोड़ते जब अणु का भाग प्राप्त हो जाये जिससे आगे तोड़ा जाना संभव न हो सके उसे परमाणु कहते हैं। यह एक प्रदेशी होता है अर्थात् सबसे छोटा होता है। आज के विज्ञान द्वारा स्वीकृत अणु भी, जो वास्तव में परमाणु नहीं, स्कंध है, जब इतना सूक्ष्म होता है कि यंत्र के बिना देखा न जासके तो परमाणु की तो बात ही क्या। अपनी सूक्ष्मता के कारण, एक आकाश प्रदेश पर अनंत परमाणु एक दूसरे में समाकर निर्वाध रूप से रह सकते हैं और लोकाकाश में एक-एक प्रदेश पर इसी प्रकार रह रहे हैं। परमाणु सूक्ष्म होता है परन्तु पुद्गल स्कंध सूक्ष्म और स्थूल दोनों होते हैं। स्कंध में प्रतिक्षण कुछ नए परमाणु स्वयं मिलते रहते हैं और कुछ पुराने उससे पृथक होते रहते हैं। इसका कारण भी उन परमाणुओं में स्वतः होने वाला स्निग्ध व रूक्ष परिणमन ही है। परमाणुओं से स्कंध का और स्कंध से परमाणुओं का मिलना तथा बिछुड़ना अथवा बनना तथा बिगड़ना रूप यह क्रम सदा से स्वतः चल रहा है और इसी प्रकार सदा चलता रहेगा। बनने-बिगड़ने का स्वभाव रखने के कारण ही इसका नाम 'पुद् + गल' पड़ गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy