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________________ ( 60 ) सूक्ष्मता व स्थूलता की तरतमता के कारण स्कंधों को छः भागों में विभाजित किया गया है - स्थूल - स्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म व सूक्ष्मसूक्ष्म । १ - पृथ्वी धातु आदि ठोस पदार्थ स्थूल स्थूल अर्थात् अत्यन्त स्थूल है, क्योंकि एक तो किसी भी पदार्थ में प्रवेश नहीं कर पाते. सबको बाधा पहुँचाते हैं और दूसरे जहाँ जिस रूप में रखदें वहाँ उसी रूप में टिके रहते हैं, अपने आप वहाँ से नहीं डिगते । पदार्थ स्थूल है, २ - जल, वायु आदि तरल तथा वायवीय को बाधा पहुँचाने के कारण स्थूल होते हुए भी ठोस नहीं है रूकावट के कहीं रखे नहीं जा सकते हैं । वस्त्रादि में से पार भी हो जाते हैं । ३ – प्रकाश के कारणभूत स्कंध स्थूलसूक्ष्म है । पृथ्वी आदि से रूक जाने के कारण स्थूलता अधिक है और शीशे आदि में से पार हो जाने के कारण अथवा पकड़ कर किसी प्रकार रोके नहीं जा सकते इसलिए कुछ सूक्ष्मता भी है । ४ - शब्दादि सूक्ष्मस्थूल है । पार हो जाते हैं इसलिए सूक्ष्म हैं, कुछ स्थूल भी है । क्योंकि एक दूसरे और बिना किसी ठोस तथा तरल सभी परन्तु प्रयत्न विशेष से Jain Education International ५ - किसी प्रकार भी रोके नहीं जा सकते हैं परन्तु यन्त्रों के द्वारा काम में लाये जा सकते हैं ऐसे ऐक्सरे तथा चुम्बक वर्गणाएँ सूक्ष्म कहे जा सकते हैं । परन्तु सिद्धांत ग्रन्थों में इन्हे भी सूक्ष्म स्थूल की कोटि में लिया गया है । ६ - मनोवगंणा तथा तैजसवर्गणा सूक्ष्म है । ७ – कार्मणवर्गणाएं जिससे द्रव्यकर्म बनते हैं, सूक्ष्म सूक्ष्म स्कंध है । सूक्ष्म तथा सूक्ष्म-सूक्ष्म जाति के स्कंध परमाणु की भांति एक दूसरे में अवगाह पाकर एक ही स्थान में अनन्तानन्त निर्बाध रूप से रह सकते हैं । पदार्थों में से कुछ न कुछ रोके जा सकते हैं अतः परमाणु मिलकर पहले स्वयं स्वाभाविक परिणमन द्वारा सूक्ष्म-सूक्ष्म अव्यवहार्य स्कंध बनते हैं । स्वतन्त्र रूप से कुछ भी काम नहीं आते अतः अव्यवहार्य है । ये ही परस्पर में मिलकर अनेक जाति की वर्गणाओं के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं—यथा - आहारकवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा, तैजसवर्गणा, कार्मणवर्गणा । ये वर्गणाएं ही सूक्ष्म स्कंध ( MOLECULE ) का निर्माण करती है अतः व्यवहार्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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