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________________ ( 58 ) प्रदेशान्तर प्राप्ति का हेतु ( अन्य प्रदेश की प्राप्ति का कारण ) ऐसी जो परिस्पन्दनरूप पर्याय, वह क्रिया है। बहिरंग साधन के साथ रहने वाले पुद्गल भी सक्रिय है पुद्गलों को सक्रियपने का बहिरंग साधन परिणामनिष्पादक काल है अतः पुद्गलकाल करणवाले हैं। परिणामनिष्पादक-परिणाम को उत्पन्न करने वाला, परिणाम उत्पन्न होने में जो निमित्तमत ( बहिरंग साधन भूत ) है-ऐसा। जो पदार्थ जीवो के इन्द्रिय ग्राह्य विषय है वे सब मूर्त-पुद्गल है। यद्यपि जीव अमूर्त द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। अर्थात् जानता है। व्यवहारकाल का मान जीव-पुद्गलों के परिणाम द्वारा होता है। व्यवहार काल क्षणभंगी-प्रतिक्षण नष्ट होनेवाला, प्रति समय जिसका ध्वंस होता है ऐसा क्षणभंगुर क्षणिक । निश्चयकाल नित्य दे क्योंकि वह अपने गुणपर्यायों के आधारभूत द्रव्यरूप से सदैव अविनाशी है। फलितार्थ - निश्चयकाल द्रव्यरूप होने से नित्य है, व्यवहार काल पर्याय रूप होने से क्षणिक है।' पंचास्तिकाय संग्रह में वृश्चिक-विच्छ को त्रीन्द्रिय के अन्तर्गत माना है । कषाय-अनुरंजित योगप्रवृत्तिरूप लेश्या अन्य गति और अन्य आयुष्य का बीज होती है। अर्थात लेश्या अन्य गतिनामकमं व अन्य आयुष्यकर्म का कारण होती है ।२ चूकि जीवों को देवत्वादि की प्राप्ति में पौद्गलिक कर्म निमित्तभूत है अतः देवत्वादि जीव का स्वभाव नहीं है। जीवों को अपनी लेश्या के योग्य गतिनामकर्म व आयुष्यकर्म का बंध होता है और इसलिये उसे योग्य अन्य गति-आयुष्य प्राप्त होती है। मूर्त-मूर्त को स्पर्श करता है, मूर्त-मूर्त के साथ बंध को प्राप्त होता है। जैन दर्शन में परमाणु अतीन्द्रियचेतना, अनेकांत आदि विषयों पर गहन विवेचन है। हिंसा और अशान्ति को बढ़ाने वाले प्रमुख दो तत्त्व है-भावात्मक उत्तेजना और परिस्थिति । परिस्थिति बाहरी है और भावात्मक उत्तेजना भीतरी है। परिस्थिति को बदलने की दिशा में अधिक ध्यान जाता है, जब कि वह हिंसा का सहायक कारण है। हिंसा का मूल कारण है भावात्मक उत्तेजना। उसे बदलने की ओर ध्यान कम जाता है । जैन धर्म और दर्शन का प्रमुख सिद्धांत है—अनेकांत । इसके चार महत्वपूर्ण अंग है -समानता, स्वतन्त्रता, सापेक्षता व सह-अस्तित्व । १. पचास्तिकाय संग्रह गा. १०१ । टीका २. पचास्तिकाय संग्रह गा० ११९ । टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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