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________________ ४७२ पुद्गल-कोश द्विप्रदेशी स्कंध कदाचित् (१) कंपन करता है, (२) विविध भाव से कंपन करता है, (३) देशान्तर गति करता है, (४) स्पंदन-परिस्पंदन करता है, (५) सभी दिशाओं में गति करता है, (६) क्षुब्ध होता है अर्थात् प्रयत्न रूप से हलचल करता है तथा (७) उदीरण करता है तथा द्विप्रदेशी स्कंध उन-उन भावों में परिणमन करता है। तथा द्विप्रदेशी स्कंध कदाचित् कंपन नहीं करता है यावत् उदीरण नहीं करता है तथा द्विप्रदेशी स्कंध उन-उन भावों में परिणमन नहीं करता है। तथा द्विप्रदेशी स्कंध कदाचित् एक देश कंपन करता है तथा एक देश कंपन नहीं करता है। तीन प्रदेशी स्कंध-(१) कदाचित् कंपन करता है; (२) कदाचित् कंपन नहीं करता है, (३) कदाचित् एक देश कंपन करता है, एक देश कंपन नहीं करता है ; (४) कदाचित् एक देश कंपन करता है, बहुदेश कंपन नहीं करते हैं, (५) कदाचित् बहुदेश कंपन करते हैं, एक देश कंपन करता है। चार प्रदेशी स्कंध, (१) कदाचित् कंपन करता है ; (२) कदाचित् कंपन नहीं करता है ; (३) कदाचित् एक देश कंपन करता है, एक देश कंपन नहीं करता है ; (४) कदाचित् एक देश कंपन करता है, बहुदेश कंपन नहीं करते हैं ; (५) कदाचित् बहुदेश कंपन करते हैं, एक देश कंपन करता है, (६) कदाचित् बहुदेश कंपन करते हैं तथा बहुदेश कंपन नहीं करते हैं । इसी प्रकार पंचप्रदेशी स्कंध यावत् (यावत् दस प्रदेशी स्कंध यावत् संख्यात प्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कंध ) अनंत प्रदेशी स्कंधों में छः भंग-विकल्प समझने चायिए। नोट-परमाणु, संख्यात, असंख्यात व अनंत परमाणुओं के जितने स्कंध हैं वे सभी चल है किन्तु एक अन्तिम महास्कंध चलाचल है क्योंकि उसमें कोई परमाणु चल है और कोई परमाणु अचल है । स्कंध काल द्रव्य के कारण सक्रिय होते हैं क्योंकि कालाणु द्रव्य का गुणपरिणाम निर्वर्तक होता है। .३ स्कंध पुद्गल और सकंपता-निष्कंपता दुपएसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा । गोयमा ! सिय देसेए, सिय सव्वेए, सिय निरेए। एवं जाव अणंतपएसिए । -भग० श २५ । ४ । सू २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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