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________________ पुद्गल-कोश ४७३ द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनन्त प्रदेशी स्कंध का (१) कदाचित् देश रूप से कंपन होता है, (२) कदाचित् सर्प रूप से कंपन होता है तथा (३) कदाचित् निष्कंप होता है। दुपएसिया णं भंते ! खंधा-पुच्छा। गोयमा ! देसेया वि, सत्वेया वि, निरेया वि । एवं जाव अणंतपएसिया। - भग० श २५ । उ ४ । सू २१५ द्विप्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध (बहुवचन का देश रूप से कंपन होता है, सर्वांश से भी कपन होता है तथा निष्कंप भी रहते हैं। .५५ पुद्गल की सक्रियता-अनित्यता .१ द्रव्याथिकगुणभावे पर्यायाथिकप्रधान्यात् सर्वेभावा उत्पादध्ययदर्शनात् सक्रिया अनित्याश्चेति । -तत्त्वराज० अ ५। ७ । २५ पर्यायाथिक नय की प्रधानता तथा द्रव्याथिक नय की गौणता से द्रव्य को सक्रिय तथा अनित्य कहा जाता है। अतः पुद्गल इस अपेक्षा से सक्रिय तथा अनित्य है। .२ क्रिया की परिभाषा परिस्पन्दनलक्षणा क्रिया। -प्रवचन सार २ । ३७ की प्रदीपिकावृत्ति क्रिया को परिस्पन्दन लक्षण वाली कहा है । नोट परिस्पंदन शक्ति ( गुण ) से ही पुद्गल क्रिया में समर्थ है-प्रवचन सार मा ३७ की प्रदीपिका वृत्ति । ३ स्कंध पुद्गल की गति दुपएसियाणं भते ! खंधाणं अणुसेदि गती पवत्तइ ? विसेदि गती पवत्तइ ? एवं चेव ; एवं जाव-अणंतपएसियाणं खंधाणं । -भग० श २५ । उ ३ । सू ९३ पृ० ९१४ द्विप्रदेशी स्कंध की गति अनुश्रेणी होती है, विश्रेणी गति नहीं होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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