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________________ पुद्गल - कोश • ५४ स्कंध पुद्गल और एजन- -परिस्पंदन- कंपन • १ स्कंध पुद्गल और एजनादि क्रिया दुप्पएसिए णं भंते ! एयइ, जाव - परिणमइ, एयड़, देसे नो एयइ | खंधे एयइ, जाव-परिणमइ ? गोयमा ! सिय सिय णो एयइ, जाव णो परिणमइ ; सिय देसे तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयइ ? गोयमा ! सिय एयइ, सिय नो एइ, सिय देसे एयइ नो देसे एयइ, सिय देसे एयइ-नो देसा एयंति ; सिय देसा एयंति-नो देसे एयइ । ४७१ चउप्पएसिए णं भंते! खंधे एयइ ? गोयमा ! सिय एयइ, सिय नो एus, सिय देसे एयइ-नो देसे एयइ, सिय देसे एयइ-नो देसा एयंति, सिय देसा एयंति-नो देसे एयइ ; सिय देसा एयंति - णो देसा एयंति। जहा चउप्पएसिओ तहा पंचपएसिओ, तहा जाव अनंतपएसिओ । - भग० श ५ | उ ७ । सू २ से ४ २. पोग्गल वयम्हि अणू संखेज्जादी हवंति चलिदाहु । चरिममहक्बंधम्मि व चलाचला होंति हु पदेसा ॥ परमाणु, द्विप्रदेशी आदि सभी स्कंध चलायमान है परन्तु अंतिम महास्कंध चलाचल है । - गोजी० शा ५९२ द्विदेशी स्कंध यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध कदाचित् सकंप होते हैं, कदाचित् निष्कंप होते हैं । Jain Education International प्रदेश स्कंध ( बहुवचन ) यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) सकंप भी होते हैं तथा निष्कंप भी होते हैं । द्विप्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) यावत् ( दस प्रदेशी स्कंध यावत् संख्यात प्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कंध ) अनंत प्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) का देश रूप से भी कंपन होता है, सर्वांश रूप से भी कंपन होता है, निष्कंप भी रहते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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