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________________ ( 44 ) जितने क्षेत्र में जीव और पुद्गल गति कर सकते हैं, उतना क्षेत्रलोक है और जितना क्षेत्रलोक है उतने क्षेत्र में जीव और पुद्गल गति कर सकते हैं । लोक के सब अन्तिम भागों में आबद्ध पार्श्व-स्पृष्ट पुद्गल है । लोकांत के पुद्गल स्वभाव से ही रूखे होते हैं । वे गति में सहायता करने की स्थिति में संघटित नहीं हो सकते । नारकी, भवनपति वाणव्यंतर ज्योतिषी देवों में कई आहार को जानते हैं, देखते हैं, आहार करते हैं। कई न जानते हैं, न देखते हैं व आहार करते हैं । एकेन्द्रियद्वीन्द्रिय व त्रीन्द्रिय जीवों में - न जानते हैं, न देखते हैं परन्तु आहार करते हैं । चतुरिन्द्रिय जीव कई जानते हैं, देखते हैं आहार करते हैं । कई जानते हैं, न देखते हैं पर आहार करते हैं । पंचेन्द्रिय तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव व मनुष्य कई जानते हैं, देखते हैं व आहार करते हैं । कई जानते हैं, देखते नहीं व आहार करते हैं । वैमानिकदेव कई जानते हैं, देखते हैं, और आहार करते हैं, कई न जानते हैं, नहीं देखते हैं परन्तु आहार करते हैं । जीव की "त्रिवक्रा - चतुःसामयिकी" गति होती है । एक समय अधोवर्ती विदिशा से दिशा में पहुँचने में, दूसरा समय त्रसनाड़ी में प्रवेश करने में, तीसरा समय ऊर्ध्व गमन में और चौथा समय सनाड़ी से निकल कर उस पार स्थावर नाड़ीगत उत्पत्ति स्थान तक पहुँचने में लगता है । सूक्ष्म शरीर दो प्रकार के हैं-तैजस और कार्मण । तैजस शरीर, तैजस पर - माणुओं से बना हुआ विद्युतशरीर है । इससे स्थूल शरीर में सक्रियता, पाचन, दीप्ति और तेज बना रहता है। कार्मणशरीर सुख-दुःख के निमित्त बननेवाले कर्म अणुओं के समूह से बनता है | योनिभूत वीर्य की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त की होती है । शरीर पौद्गलिक है, उसका कारण कर्म है । इसलिए वह भी पौद्गलिक है । पौद्गलिक कार्य का समवायी कारण पौद्गलिक होता है। मिट्टी भौतिक है तो उससे बनने वाला पदार्थ भी भौतिक होगा । आहार आदि अनुकूल सामग्री से सुखानुभूति और शस्त्र प्रहारादि से दुःखानुभूति होती है। आहार और शस्त्र पौद्गलिक है । इसी प्रकार सुख-दुःख के हेतु - भूत कर्म भी पौद्गलिक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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