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________________ ( 43 ) इसके बाद हमने परीक्षामुख, न्यायरी पिका-अष्टसहस्री, प्रमेयरत्नमाला, प्रमेयकमलमार्त्तन्ड, स्याद्वादरत्नाकरावतारिका, तत्त्वार्थश्लोकवातिकालकार, प्रमाणमीमांसा, स्याद्वादमंजरीका अध्यनकर आचारांग आदि बत्तीस आगमों का अध्ययन किया। प्रत्येक विषय को क्रमवार विभाजन किया। विभाजित की पद्धति दशमलब प्रणाली से है। प्राण और पर्याप्ति का कार्य-कारण सम्बन्ध है। जीवन शक्ति को पौद्गलिक शक्ति की अपेक्षा रहती है। जन्म के पहले अण में प्राणी कई पौद्गलिक शक्तियों की रचना करता है। उनके द्वारा स्वयोग्य पुद्गलों का ग्रहण, परिणमन व उत्सर्जन होता है। इनकी रचना प्राणशक्ति के अनुपात पर होती है। जिस प्राणी में जितनी प्राणशक्ति की योग्यता होती है, वह उतनी ही पर्याप्तियों का निर्माण कर सकता है । प्राण जीव है व पर्याप्ति पुद्गल है। प्राणियों की शरीर के माध्यम से होने वाली जितनी क्रियाएं हैं वे सब आत्मशक्ति व पौद्गलिक शक्ति दोनों के पारम्परिक सहयोग से ही होती है। अजीव, मन, भाषा आदि के पुद्गल जीव द्वारा ग्रहण किये जाते हैं । ___ स्थानांग सूत्र में कहा है कि सूक्ष्म वायु के द्वारा स्पृष्ट पुद्गल स्कंधों में कंपन, प्रकंपन, चलन, क्षोभ, स्पंदन, घटना, उदीरणा और विचित्र आकृतियों का परिणमन देखकर विभग अज्ञानी को ये सब जोव है-ऐसा भ्रम हो जाता है । आयुष्यकर्म के पुद्गल जिस स्थान के उपयुक्त बने हुए होते हैं, उसी स्थान पर जीव को घसीट ले जाते हैं। उन पुद्गलों की गति उनकी रासायनिक क्रिया के अनुरूप होती है। योनिभूत वीर्य की स्थिति जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त की होती है। गर्म में प्रवेश पाते समय जीव का पहला आहार ओज और वीर्य होता है । वे स्व-प्रायोग्य पुद्गलों का आकर्षण और संग्रह करते हैं। गर्भज प्राणी का प्रथम आहार रज-वीर्य के अणुओं का होता है । देवता अपने-अपने स्थान के पुद्गलों का संग्रह करते हैं। लेकिन गर्मज प्राणी का प्रथम आहार रज-वीर्य के पुद्गल परमाणुओं का होता है। इसके अनन्तर हो उत्पन्न प्राणी पौदगलिक शक्तियों का क्रमिक निर्माण करते हैं। प्रत्येक प्राणी के उत्पत्ति-स्थान में वर्ण, गंध, रस व स्पर्श का कुछ न कुछ तारतम्य होता ही है। प्रत्येक वस्तु के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, शब्द और संस्थान ( वृत्त, परिमंडल, व्यंस, चतुरस्र ) का ज्ञान सहायक-सामग्री सापेक्ष होता है। अतीन्द्रिय ज्ञान । परिस्थिति की अपेक्षा से मुक्त होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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