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________________ ( 45 ) बन्ध की अपेक्षा जीव और पुदगल अभिन्न है-एकमेक है। लक्षण की अपेक्षा भिन्न है। जीव चेतन है और पुदगल अचेतन है। जीव अमूर्त है और पुद्गल मूर्त है । कर्म शब्द आत्मा पर लगे हुए सूक्ष्म पौद्गलिक पदार्थ का वाचक है । आहार तीन प्रकार के हैं-ओज आहार, रोम आहार व कवल आहार । अस्तिकाय शब्द का प्रयोग जैन दर्शन में ही हुआ है, जबकि द्रव्य शब्द का व्यवहार अनेक दर्शनों में होता है। कालिक सत्तावाला सावयव अर्थात प्रदेश पदार्थ अस्तिकाय है। जिसमें स्थूल अवयवी है-वे सब पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श वाले हैं-मूर्त या रूपी है। चक्षु रूप का ग्राहक है, और रूप उसका ग्राह्य है । चक्षु और रूप के उचित सामीप्य से चक्षु विज्ञान होता है। इस प्रकार सब इन्द्रियों के विषय में जान लेना चाहिए। चूकि इन्द्रिय विज्ञान रूपों का ही होता है। प्रिय रूप, शब्द, गंध, रस और स्पर्श राग को उभारते हैं। अप्रिय रूप, शब्द, गंध, रस और स्पर्श द्वष को उभारते हैं। ये सब पुद्गल हैं। ___ जो कलह का उपशमन करता है वह धर्म की आराधना करता है । किसी के प्रति भी तिरस्कार घृणा, और निम्मता का व्यवहार करना हिंसा है, व्यामोह है । अहिंसा धान है, सत्य आदि उसकी रक्षा करने वाली बाड़ें है। अहिंसा जल है, सत्य आदि उसकी रक्षा के लिए सेतु है। वायु जैसे अग्निकाय को पार कर जाता है, वैसा ही जागरूक ब्रह्मचारी काययोग की आसक्ति को पार कर जाता है । प्रमाद कर्म और अप्रमाद अकर्म है। पौद्गलिक सुखों की तुलना किंपाक फल से की जा सकती है। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती व उनकी पटरानी कुरुमती मरकर क्रमशः सातवीं, छट्ठी नरक में गये। पाषाण युग से अणुयुग तक जितने उत्पीड़क और मारक शस्त्रों का आविष्कार हुआ है, वे निष्क्रिय शस्त्र हैं-द्रव्य शस्त्र हैं। ये शस्त्र पुद्गलमय हैं। उनमें स्वतः प्रेरित घातक-शक्ति नहीं है। । भगवान ने कहा-हे गौतम ! सक्रियशस्त्र ( भावशस्त्र ) असंयम है। विध्वंस का मूल वही है । निष्क्रिय शस्त्रों में प्राण फूकने वाला भी वही है । पौद्गलिक उपाधियों से बंधा हुआ जीव संसारी आत्मा है। आत्मा से आत्मा का सजातीय सम्बन्ध है। पुद्गल उसका विजातीय तत्त्व है। जाति और रंग-रूपये पौद्गलिक है। सजातीय की उपेक्षा कर विजातीय को महत्व देना प्रमाद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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