SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३६ पुद्गल-कोश लोकव्यापकत्वात् तेषां सकललोकप्रदेशानां चासंघातव्वादवस्थितत्वाच्च चतुरग्रतेति । विधानतस्तु कल्योजप्रदेशावगाढाः । - - भग० श २५ । उ ४ । सू ७१, ७५ । पृ० ८६७-६८ एक परमाणु पुद्गल प्रदेशावगाह की अपेक्षा कृतयुग्म प्रदेशावगाढ नहीं है, श्योज प्रदेशावगाढ नहीं है, द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ नहीं है परन्तु कल्योज प्रदेशावगाढ है । परमाणु पुद्गलों का औधिक विवेचन करने से प्रदेशावगाह की अपेक्षा क्षेत्र प्रदेश की संख्या कृतयुग्म प्रदेशावगाढ होती है परन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म तथा कल्योज प्रदेशावगाढ नहीं होती है तथा विधानादेश से ( व्यक्तिगत रूप से ) विवेचन करने पर प्रदेशावगाह को अपेक्षा उनकी संख्या कृतयुग्म, त्र्योज रूप तथा द्वापरयुग्म प्रदेशावगाढ नहीं होती है परन्तु कल्योज रूप प्रदेशावगाढ होती है । ४ कालस्थिति ( समय ) अपेक्षा परमाणुपोग्गले णं भंते! कि कडजुम्मसमय ठिईए- पुच्छा । गोममा ! सिय कडजुम्मसमयट्ठईए, जाव सिय कलिओगसमय ट्टिईए । एवं जावअणतपसिए । ( सू० ७९ ) परमाणुपोग्गला णं भंते ! किं कडजुम्म० – पुच्छा । गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मसमयठिईया, जाव - सिय कलिओगसमयठिईया ४ | विहाणादेसेणं कडजुम्मसमयठिईया वि, जाव - कलिओगसमपट्टिईया वि ४ एवं जाव अनंत एसिया ( सू० ८० ') — भग० श २५ । उ ४ । सू ७९, ८० | पृ० ८६८ एक परमाणु पुद्गल काल ( समय ) की अपेक्षा कदाचित् कृतसूग्म, कदाचित् योज रूप, कदाचित् द्वापरयुग्म तथा कदाचित् कल्योज रूप समय स्थितिवाला होता है । परमाणु पुद्गलों का औधिक विवेचन करने पर काल ( समय ) की अपेक्षा कदाचित् कृतयुग्म, कदाचित् त्र्योज रूप, कदाचित् द्वापरयुग्म तथा कदाचित् कल्योज रूप समय स्थितिवाले होते हैं । तथा विधानादेश से ( व्यक्तिगत रूप से विवेचन करने पर काल ( समय ) की अपेक्षा उनकी स्थिति की समय- संख्या कृतयुग्म या योज या द्वापरयुग्म या कल्योज रूप होती है । Jain Education International : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy