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________________ २८८ पुद्गल-कोश परमाणु पुद्गल में स्वभाव पर्याय होती है क्योंकि वह स्वभावतः एक है और शुद्ध है। परन्तु राग द्वेष के स्थानभूत बंध के योग्य स्निग्ध-रूक्ष गुणों के द्वारा द्वयणुक आदि स्कंध रूप में परिणमन करता है तब उसमें विभाव पर्याय होती है स्कंध अवस्था में वह बहुप्रदेशी होता है। इसी विभाव पर्याय के कारण बहुप्रदेशता रूप कायत्व के कारण परमाणु पुद्गल को उपचारतः सर्वज्ञ देव ने काय कहा है। .३२.२ एकत्व-पृथगत्व एगत्तेण पुहुत्तेण खंधा य परमाणो य। - उत्त० अ ३६ । गा ११ । पूर्वार्ध । पृ० १०५० अनेक परमाणुओं के एकत्व से स्कंध बनता है और उसका पृथगत्व होने से पुनः परमाणु हो जाते हैं। .३२.३ बंधन के नियम (क) भाज्य-जघन्यगुणस्निग्धानां जघन्यगुणरूक्षाणां च परस्परेण बंधो न भवति ॥३३॥ सिद्ध टीका-जघन्यगुणस्निग्धानामित्यादि भाष्यम्। प्रकृतत्वाद् बंध: प्रतिषिध्यते न शब्देन, केषां बंधो न भवति? जघन्यगुणस्निग्धानां जघन्यगुणरूक्षाणां च। जघने भवो जघन्यः, (जधन्य इवान्यो जघन्यः) निकृष्ट इत्यर्थः, जघन्यश्चासौ गुणश्च जघन्यगुणः ( जघन्यगुणः) स्निग्धो येषां वे जघन्यगुणस्निग्धाः पुद्गलास्तेषां जघन्यगुणरूक्षाणां च परस्परेण बंधः प्रतिषिध्यते, परस्परेणेति सजातीयविजातीयविशेषप्रतिपादनम्। स्वस्थाने स्निग्धस्य स्निग्धेन नेष्यते बंधः, रूक्षस्यापि रूक्षेण नवास्ति बंधः, तथा परस्थानेऽप्येकगुणस्निग्धस्यैकगुणरूक्षेण नेवास्ति बंधः । सत्यप्येषां संयोगे स्निग्धरूक्षगुणत्वे च न परस्परमेकत्वपरिणतिलक्षणो दंधः समस्ति, कि पुनः कारण मत्रैषां बंधो न भवतीति ? __ ताग्विधपरिणति शक्तरभावात् परिणामशक्तयश्य द्रव्याणां विचित्राः क्षेत्रकालाद्यनुरोधिन्यः प्रयोगवित्रसापेक्षाः प्रभवन्ति, न जातुचित् पर्यनुयोगवशेन पर्यनुयोक्तुरिच्छामनुरुध्यते, जघन्यश्च स्नेहगुणः स्त्रोकत्वादेव जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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