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________________ पुद्गल-कोश २८७ (ख) गइगमणयमस्सिदूण जं जहण्णाणुभागट्ठाणं तस्स सव्व परमाणुपुंज एक दो कादूण टुविय तत्थ सव्वभेदाणुभागपरमाणु घेतूण वर्ण-गंधरसे मोतूण पासं चेव बुद्धीए घेतूण तस्स षण्णाच्छेदो कायन्वो जाव विभागगज्जिदपरिच्छेदोत्ति । तस्स अंतिमस्स खंडस्स अच्छेज्जस्स अविभागपडिच्छेद इदि सण्णा।। . -षट् • खण्ड० ४, २, ७ । सू १९९ । टीका । पु १२ पृ० ९२ नैगमनय का आश्रय करके जो जघन्य अनुभाग स्थान है उसके सब परमाणुओं के समूह को एकत्रित करके स्थापित करे। फिर उनमें से सर्वमंद अनुभाग से संयुक्त परमाणु को ग्रहण करके वर्ण, गंध, और रस को छोडकर केवल स्पर्श का युक्ति से ग्रहणकर उसका विभाग रहित छेद होने तक प्रज्ञा के द्वारा छेद करना चाहिए । उस नहीं छेदने योग्य अन्तिम खण्ड की अविभाग प्रतिच्छेद सज्ञा है । (ग) x x x इह सर्वजघन्यस्यापि पुदगलस्य रसः' केवलि प्रज्ञया छिद्यमानः सर्वजीवानन्तगुणान् भागान् प्रयच्छति । ते च भागा अतिसूक्ष्मतयाऽपरभागाभावान्निरंशा अंशा रसाणव इत्युच्यन्ते । रसाणवो रसविभागा रसपलिच्छेदा भावपरमाणवइति पर्याया। -कर्म० भा ५ । गा ७८ । टीका पुद्गल के सर्व जघन्य रस केवली प्रज्ञा से, छेद किये जा सकते हैं जो सर्वजीवों के अनन्त गुण भाग हैं। वे रस भाग अति सूक्ष्म है जिनका फिर दूसरा विभाग नहीं किया जा सकता हैं अर्थात् रस के निरंश अंश को रसाणु कहा जाता है । रसाणु रस विभाग, रस पलिच्छेद तथा भाव परमाणु-ये पर्यायवाची शब्द हैं । '३२ परमाणुपुद्गल और पर्याय ३२.१ पर्याय का लक्षण । (क) अण्णणिरावेक्खो जो, परिणामो सो सहावपज्जावो । खंघसरूवेण पुणो, परिणामो सो विहावपज्जायो। -नियम० गा २८ (ख) पुद्गलपरमाणुरपि स्वभावेनकोऽपि शुद्धोऽपि रागद्वेषस्थानीयबंधयोग्यस्निग्धरूक्षगुणाभ्यां परिणम्य द्वयणुकादिस्कधरूपविभावपर्यायर्बहुविधो बहुप्रदेशो भवति। -वृद्रसं० गा २६ । टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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