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________________ पुद्गल-कोश २४३ विवेचन--अनंतप्रदेशी स्कंध वायु से व्याप्त होता है क्योंकि वह वायु की अपेक्षा सूक्ष्म है। जब वायु स्कंध की अपेक्षा अनंतप्रदेशी स्कंध महान होता है तब वायु अनंतप्रदेशी स्कंध से व्याप्त होती है, अन्यथा नहीं। इसलिए ऐसा कहा गया है कि अनंतप्रदेशी स्कंध वायु से व्याप्त होता है और वायु अनंतप्रदेशी स्कंध से कदाचित व्याप्त होती है और कदाचित् नहीं होती। .५ विशिष्ट पुद्गल स्कंध और वायुकाय की स्पर्शना वत्थीणं भंते ! वाउयाएणं फुडे, वाउयाए वस्थिणा फुडे ? गोयमा ! वत्थी वाउयाएणं फुडे, नो वाउयाए वत्थिणा फुडे। -भग० श १८ । उ १० । सू १९९ । पृ० ७८५ वस्ति ( मशक ) वायुकाय से स्पृष्ट है, वायुकाय वस्ति से स्पष्ट नहीं है । विवेचन-मशक से जब हवा भरी जाती है, तब मशक वायु से व्याप्त होती है, क्योंकि वह समस्त रूप में उसके भीतर समायी हुई है। किन्तु वायुकाय, मशक से व्याप्त नहीं है। वह वायुकाय के ऊपर चारों ओर परिवेष्टित है। .२१ पुद्गल की विविध अपेक्षा से स्थिति (क) संतई पप्प तेऽणाई अपज्जवसिया वि य। । ठिइ पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि यं ॥ .. -उत्त• अ ३६ । गा १२ । पृ० १०५० लवटीका ते स्कंधाः परमाणवश्च सन्तति अपरापरोत्पत्तिप्रवाहरूपां प्राप्य अनादयः आदिरहितास्तथा अपर्यवसिताः अंतरहिता स्थिति प्रतीत्य क्षेत्रावस्थानरूपां स्थिति अङ्गीकृत्यसादिकाः सपयवसिताश्च वर्तन्ते।। (ख) (पोग्गलत्थिकाए)कालओ न कयाइ, न आसी जाव (न कयाइ भवइ, न कयाइ न भविस्सइ ति भुवि य भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, णियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्टिए) णिच्चे x xx। -भग० श २ । उ १० । सू ५७ । पृ० ४३४ -ठाण० स्था ५ । उ ३ । सू ४४१ । पृ० २६६ (ग) एस णं भंते ! पोग्गले अतीतं अणंतं, सासयं समयं भवीति वत्तव्वं सिया? हंता, गोयमा ! एसणं पोग्गले अतीतं अणतं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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