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________________ १६८ पुद्गल-कोश लोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे कइदिसि पोग्गला छिज्जति ? एवं चेव, एवं उवचिज्जंति, एवं अवचिज्जति । -भग० श २५ । उ ४ । सू ७, ८ लोक के एक आकाशप्रदेश में –निर्व्याघात रूप से छः दिशाओं से आकर पुद्गलों का चय होता है- एकत्रित होते हैं तथा व्याघात ( बाधा पड़ने से ) होने से कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से तथा कदाचित् पाँच दिशाओं से पुद्गलों का चय होता है। इसी प्रकार लोक के एक आकाशप्रदेश में निर्व्याघात रूप से छः दिशाओं से पुद्गलों का छेदन-विच्छेदन होता है तथा व्याघात होने से कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से तथा कदाचित् पाँच दिशाओं से पुद्गलों का छेदन-विच्छेदन होता है। इसी प्रकार लोक के एक आकाशप्रदेश में छः, पाँच, चार तथा तीन दिशाओं से पुद्गल का उपचय-संख्या में वृद्धि-गाढ रूप में एकत्रित होना होता है। इसी प्रकार लोक के एक आकाशप्रदेश में पुद्गलों का अपचय-संख्या में हानि-समूह की प्रगाढता में कमी होती है । .१२.०८.१० पुद्गल और स्पर्शनिक्षेप तेरसविहे फासणिक्खेवे--णामफासे, ठवणफासे, दव्वफासे, एयखेत्तफासे, अणंतरखेत्तफासे, देसफासे, तयफासे, सव्वफासे, फासफासे, कम्मफासे, बंधफासे, भवियफासे, भावफासे चेदि x x x। जं दवं दवेण पुसदि सो सव्वो दव्वफासो णाम x xx। जं दव्वमेयक्खेत्तेण पुसदि सो दवो एयक्खेत्तफासो णाम x x x। जं दवमणंतरक्खेत्तेण पुसदि सो दवो अणंतरक्खेत्तफासो णाम x x x। जं दव्वदेसं देसेण पुसदि सो सव्वो देसफासो णाम x x x। जं दव्वदेसं देसेण पुसदि सो सम्वो देसफासोणाम x x x। जं दव्वं सव्वं सन्वेण पुसदि, जहा परमाणुदव्वमिदि, सो सव्वो सव्वफासो णाम। जो सो फासफासो णाम सो अट्टविहो- कवखडफासो, मउवफासो, गरुवफासो, लहुवफासो, णिद्धफासो, रूक्खफासो, सीदफासो, उण्हफासो। सो सव्वो फासफासो णाम । -षट्० खं० ५, ३ । सू ३, १२, १४, १६, १८, २२, २४ । पु १३ । पृ० २, ११, १६, १७, १८, २१, २४ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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