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________________ पुद्गल-कोश ६७ अगहण्णवग्गणा तेजइयसरीरवग्गणा अगहणवग्गणा भासावग्गणा अगहणवग्गणा मणोवग्गणा अगहणवग्गणा कम्मइयवग्गणा धुवखंधवग्गणा सांतरणिरंतरवग्गणा धुवसुण्णवग्गणा पत्तेयसरीरवग्गणा धुवसुण्णवग्गणा बादरणिगोदवग्गणा धुवसुण्णवग्गणा सुहुमणिगोदवग्गणा धुवसुण्णवग्गणा महाखंधवग्पणा चेदि। एत्थ तेवीसवग्गणासु चदुसु धुवसुण्णवग्गणासु अवणिदासु एगूणवीसदिविघा पोग्गला होति । पादेक्कमणंतभेदा। - षट्० खं० ५। ५ । सू ८२ । टीका । पु १३ । पृ. ३५१-२ ___ मूर्त पुदगल उन्नीस प्रकार के हैं। यथा-एकप्रदेशी वर्गणा, संख्यातप्रदेशी वर्गणा, असंख्यातप्रदेशी वर्गणा, अनन्तप्रदेशी वर्गणा, आहारवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, तैजसशरीरवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, भाषावर्गणा, अग्रहणवर्गणा, मनोवर्गणा, अग्रहणवर्गणा, कार्मणशरीरवर्गणा, ध्र वस्कंधवर्गणा, सान्तरनिरंतरवर्गणा, ध्र वशून्यवर्गणा, प्रत्येकशरीरवर्गणा, ध्र वशून्यवर्गणा, बादरनिगोदवर्गणा, ध्र वशून्यवर्गणा, सूक्ष्म निगोदवर्गणा, ध्र वशून्यवर्गणा, महास्कंधवर्गणा । इन तेईस वर्गणाओं में से ध्र वशून्यवर्गणाओं को निकाल देने पर उन्नीस प्रकार के पुद्गल होते हैं। प्रत्येक वर्गणा के अनन्त भेद होते हैं। •०७८ तेईस भेद अणुसंखासंखेज्जाणंता य अगेज्जगेहि अंतरिया। आहारतेयभासामणकम्मइया धुवक्खंधा॥ सांतरणिरंतरेण य सुण्णा पत्तेयदेहधुवसुण्णा । बादरणिगोदसुण्णा सुहमणिगोदा णभो महवखंधा॥ -गोजी० गा ५९३-९४ वर्गणा की अपेक्षा समास में पुद्गलों के तेईस भेद होते हैं। सजातीय वस्तुओं के समुदाय को वर्गणा कहते हैं । यथा-(१) अणुवर्गणा, (२) संख्याताणुवर्गणा, (३) असंख्याताणुवर्गणा, (४) अनन्ताणुवर्गणा, (५) आहार वर्गणा, (६) अग्राह्यवर्गणा, (७) तैजसवर्गणा, (८) अग्राह्यवर्गणा, (९) भाषावर्गणा, (१०) अग्राह्यवर्गणा, (११) मनोवर्गणा, (१२) अग्राह्यवर्गणा, (१३) कार्मणवर्गणा, (१४) ध्र ववर्गणा, (१५) सांतर-निरंतर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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