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________________ पुद्गल-कोश सूक्ष्मपरमाणुपुद्गलों के समुदयसमितिसमागम से एक व्यावहारिक परमाणुपुद्गल निष्पन्न होता है। एक व्यावहारिक परमाणुपुद्गल में अनंतानंत परमाणुपुद्गल होते हैं । .०४.८९ वेउवियपोग्गलपरियट्टनिव्वत्तणाकाल (वैक्रियपुद्गलपरावतनिर्वर्तनाकाल) -भग० श १२ । उ ४ प्र ३० । पृ. ६६२ वैक्रियपुद्गलपरावर्त के निष्पन्न होने का काल । इसमें अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी जितना काल लगता है। यह परावर्त सब पुद्गलपरावर्तों से बड़ा होता है । .०४.९० वेउवियपोग्गलपरियट्टे ( वैक्रियपुद्गलपरावर्त ) -भग० १२ । उ ४ । प्र १४ । पृ० ६६० वैक्रिय शरीर में वर्तता हुआ जीव वैक्रिय शरीर के प्रायोग्य द्रव्यों को समस्त भाव से वैक्रिय शरीर रूप में जितने काल में ग्रहण कर लेता है उसे वैक्रियपुद्गलपरावर्त कहते हैं। .०४.९१ वेयणीयपोग्गलखंधं ( वेदनीयपुद्गलस्कंध ) -षट० खं० ४ । २ । ३ । सू ३ टीका । पु १० । पृ० १६ वेदन योग्य सुख-दुःख रूप कर्मपुद्गलस्कन्ध-वेदनीयपृद्गलस्कंध । वेदणा णाम सुह-दुक्खाणि, लोगे तहा संववहारदसणादो। ण च ताणि सुहदुक्खाणि वेयणीयपोग्गलखंधं मोत्तूण अण्णकम्मदवेहितो उप्पज्जति ।xxx। वेदना का अर्थ सुख और दुःख होता है, क्योंकि लोक में वैसा व्यवहार देखा जाता है और वे सुख-दुःख वेदनीय रूप पुद्गलस्कंध ( सातावेदनीय और असातावेदनीय ) के सिवाय अन्य कर्मद्रव्यों से उत्पन्न नहीं होते हैं। .०४.९२ संखाईयलोगपोग्गलसमानिबद्धाइं (संख्यातीतलोकपुद्गलसमानिबद्धानि) -विशेभा० गा ८०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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