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________________ पुद्गल-कोश मन:पुद्गलपरावर्त के निष्पन्न होने का काल । इसमें अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी जितना काल लगता है। यह काल आन-प्राणपुद्गलपरावर्त के निष्पत्तिकाल से अनंत गुणा है और इससे वचनपुद्गलपरावर्त निष्पत्तिकाल अनंत गुणा है। यद्यपि सभी पुद्गलपरावों में अनंत कालचक्र जितना काल लगता है ऐसा कहा गया है। .०४.८५ मणपोग्गलपरियट्टे ( मनःपुद्गलपरावत) -भग० श १२ । उ ४ । प्र १४ । पृ० ६६० मनोयोग में वर्तता हुआ जीव मनोयोग के प्रायोग्य द्रव्यों को समस्त भाव सेमनोयोग रूप से जितने काल में ग्रहण कर लेता है उसे मनःपुद्गलपरावर्त कहते हैं। .०४.८६ वइपोग्गलपरियट्टनिव्वत्तणाकाल (वचनपुद्गलपरावर्तनिर्वर्तनाकाल) -भग० श १२ । उ ४ । प्र ३० । पृ० ६६२ वचनपुद्गलपरावर्त के निष्पन्न होने का काल । इसमें अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी जितना काल लगता है। लेकिन इससे वैक्रियपुद्गलपरावर्तनिवर्तनाकाल अनंतगुणा होता है। ..४.८७ वइपोग्गलपरियट्टे (वचनपुद्गलपरावर्त) -भग० श १२ । उ ४ । प्र १४ । पृ० ६६० वचनयोग में वर्तता हुआ जीव वचनयोग के द्रव्यों को समस्त भाव से वचनयोग रूप में जितने काल में ग्रहण कर लेता है उसे वचनपुद्गलपरावर्त कहते हैं। .०४.८८ ववहारियपरमाणुपोग्गलाणं ( व्यावहारिकपरमाणुपुद्गल) -अणुओ० सू ३४२ । पृ० ११२५ टीका-अनन्तानां सूक्ष्मपरमाणपुद्गलानां संबधितो ये समुदायाः द्वयादिसमुदायाऽऽत्मकानि वृन्दानि तेषां याः समितयो बहूनि मीलनानि तासां समागमः - संयोग एकीभवनं समुवयसमितिसमागमः, तेन व्यावहारि कपरमाणुपुद्गल एको निष्पद्यते। अनंत सूक्ष्म परमाणु पुद्गलों के संबंध से समुदाय होता है ; दो तीन आदि समूदायों के वृन्द से समिति होती है। बहुत सी समितियों के मिलने से-समागम से-संयोग से -एकौभाव होने से समुदयसमितिसमागम कहलाता है। ऐसे अनंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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