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________________ पुद्गल-कोश ३१ असख्यात लोकों में अवगाहित रूपी द्रव्य-पुद्गल द्रव्य । टोका-उत्कृष्टतस्तु द्रव्यतः क्षेत्रतश्चाऽसंख्येयलोकाकाशखंडावगाढानि सर्वाग्यपि मूर्त-द्रव्याणि पश्यति । एतानि चैकस्मिन्नेव लोकाकाशेऽवगाढानि प्राप्यन्ते, शेषलोकावगाढानाम् तु दर्शनं शक्तिमात्रापेक्षयेवोच्यते ।xxx। ___ यहाँ अविधज्ञान से जानने और देखने के विषय का विवेचन है। उसमें उत्कृष्ट शक्ति – सामर्थ्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि अवधिज्ञान में उत्कृष्ट रूप से लसंख्यात लोकों में अवगाहित पुद्गलों-रूपी द्रव्यों को जानने-देखने की शक्ति होती है । यद्यपि वास्तविक रूप में लोकाकाश एक ही है। •०४.९३ सपोग्गला ( सपुद्गल ) --ठाण ० स्था २ । उ १ । सू० ५७ । पृ० १८५ सपुद्गल अर्थात् पुद्गल सहित । टीका-सपुद्गला: कर्मादिपुद्गलवन्तो जीवा, अपुद्गला:-सिद्धाः । यहाँ जीव के दो भेद किये गये हैं, यथा-सपुद्गल जीव और अपुद्गल जीव । कर्मादि पुद्गल से संयुक्त जीव-सपुद्गल कहलाते हैं। ०४.९४ सम्मत्तपुग्गलक्खयओ (सम्यक्त्वपुद्गलक्षय) -विशेभा० गा १३२० सम्यक्त्व मोहनीय कर्म के पुद्गलों का क्षय । सो तस्स विसुद्धयरो जायइ सम्मत्तपोग्गलक्खयो। दिट्ठी व्व सण्हसुद्धग्भपडलविगमे मणुसस्स ॥ जिस प्रकार अभ्रपटल के दूर होने से मनुष्य की दृष्टि में स्पष्टता होती है, उसी प्रकार सम्यक्त्व मोहनौय के पुद्गलों का क्षय होने से जीव का सम्यगदर्शन विशुद्धतर होता है। •०४.९५ सम्मत्तपुग्गले ( सम्यक्त्वपुद्गल) -कर्म० भा ४ । गा १४ टीका उद्धृत । पृ० १४३ सम्यक्त्व मोहनीय कर्म के पुद्गल ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016030
Book TitlePudgal kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1999
Total Pages790
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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