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________________ ( 80 ) करने के लिए मुख्य वाचक के वाच्यार्थ की प्रमाणता का प्रतिपादन करता है उसे निक्षेप कहते हैं। मनुष्य के पास प्रवृत्ति के तीन साधन है-शरीर, वचन और मन । ये तीनों योग कहलाते हैं । योग का अर्थ है-प्रवृत्ति, चंचलता और सक्रियता। - श्रमणोपासक होने पर भी अभीचिकुमार, उदायन राजर्षि के प्रति वैर के अनुबंध से युक्त था। रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों के निकट असुर कुमारों के चौसठ लाख आवास कहे गये हैं। वह अभीचिकुमार बहुत वर्षों तक श्रमणोवासक पर्याय का पालन कर और अर्द्धमासिक संलेखना से तीस भक्त अनशनकर, छेदन करके, उस पापस्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण किये बिना, मरण के समय काल धर्म को प्राप्तकर, रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों के निकट, असुरकुमार देवों के चौसठ लाख आवासों में से किसी आवास में 'आयाव' रूप असुरकुमार देवपने उत्पन्न हुआ। विवेचन-यद्यपि अभीचिकुमार, जीवाजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता, श्रमणोपासक बन गया था, तथापि उदायन राजर्षि के प्रति उसका वैर-भाव शान्त नहीं हुआ। उसकी आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही वह कालधर्म को प्राप्त हो गया। इससे वह असुरकुमार देवों में उत्पन्न हुआ। भाषा-आत्मा नहीं है, अन्य ( आत्मा से भिन्न अर्थात् पुद्गल स्वरूप ) है। भाषा-रूपी है, अजीव है, अचित्त है। फिर भी भाषा जीवों के होती है, अजीवों के नहीं होती। बालते समय भाषा कहलाती है। परन्तु बोलने के पूर्व तथा पश्चात् भाषा नहीं कहलाती। बोलने के समय भाषा का भेदन होता है परन्तु बोलने से पूर्व और पश्चात् भाषा का भेदन नहीं होता है । भाषा का समय व्यतित हो जाने पर ( जिस समय शब्द भाषा-परिणाम को छोड़ देता है, उस समय ) भाषा का भेदन नहीं होता है, क्योंकि उस समय उत्कृष्ट प्रयत्न का अभाव है। भाषा की तरह मन भी आत्मा नहीं है, अन्य ( आत्मा से भिन्न अर्थात पुदगल स्वरूप ) है। मन अजीव है, रूपी है, अचित्त है। फिर भी मन जीवों के होता है, अजीवों के नहीं। मनन से पूर्व व पश्चात् मन नहीं होता है परन्तु मनन करने के समय मन कहलाता है। मनन के समय मन का भेदन होता है परन्तु मनन से पूर्व और पश्चात् मन का भेदन नहीं होता है। ग्रन्थों में कहा है समणीमवगयवेयं परिहार-पुलाय-अप्पमत्तं च । चोद्दसपुन्विं आहारयं च, ण य होइ संहरइ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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