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________________ ( 65 ) चारित्र और योग __ सामायिक चारित्र, छेदोपस्थानीय चारित्र तथा परिहारविशुद्धिक चारित्र कल्प का स्वीकरण शुभ योग में-अप्रमत्त अवस्था में होता है। उस समय तेजो लेश्या प्रभृति पीछे की तीन विशुद्ध लेश्या होती है। पूर्व प्रतिपन्न सामायिकादि तीनों चारित्र को किसी ने पूर्व में प्राप्त किया है तो उसका दोनों योगों ( शुभ योग-अशुभ योग ) में रहना कथंचित् रहना हो सकता है। पर वह अत्यन्त संक्लिष्ट अशुभयोग में नहीं रहता है न अति संक्लिष्ट लेश्या होती है। -लेश्या कोश तथा मिथुनस्य-स्त्रीपुलक्षणस्य कर्म मैथुनम्-अब्रह्म, तत् मनोवाक्कायानां कृतकारितानुमतिभिरौदारिकवैक्रियशरीरविषयाभिष्टधा विविधोपाधितो बहुविधतरं वेति । -ठाण• स्था० १। सू ४८ । टीका __ स्त्री-पुरुष के संसर्ग से मैथुन क्रिया होती है। वह मन, वचन और काय (योग) की अपेक्षा से तीन प्रकार की तथा इन तीनों के कृत-कारित-अनुमोदित ( करता हूँ, कराता हूँ, किये हुए का अनुमोदन करना ) की अपेक्षा से नौ भेद हुए। फिर इन नौ भेदों के औदारिक तथा वैक्रिय शरीर के भेद की अपेक्षा मैथुन क्रिया के कुल अठारह भेद हुए। अथवा अन्य नामों से ( उपाधि से ) इसके अनेक भेद हैं या हो सकते हैं। नोट-'मैथुन पाप' अठारह पापस्थानों में एक पापस्थान है। मैथुन आश्रव के बीस भेदों के एक आस्रव भी है। यह अशुभ योग आस्रव का एक भेद है। योग और सयोगी-जिन में अपर्याप्त आलाप ___ जोग पडि जोगिजिणे होदि हु णियमा अपुण्णगत्तंतुः । -गोजी० गा० ७११ सयोगी-जिन में नियम से योग की अपेक्षा ही अपर्याप्त आलाप होता है परन्तु शेष नौ गुणस्थानों में एक पर्याप्त आलाप ही होता है ( १, २, ४, ६, १३ बाद)। मनुष्य में कृष्णापाक्षिक को छोड़ कर अनन्तरोपपन्नक मनुष्य में पाये जाने वाले पैतीस बोलों में तीसरा और चौथा भंग बताया है। "बंधी, न बंधइ, न बंधिस्सई" यह चौथा भंग है। यह चौथा भंग चरम शरीरी जीव में ही घटित होता है। ____ अस्तु गुणस्थानों में से-'मिथ्यादृष्टि, असंयत, सासादन, प्रमत्तसंयत और सयोगी केवली गुणस्थान में प्रत्येक के सामान्य, पर्याप्त, अपर्याप्त-ये तीन आलाप होते हैं। शेष नौ गुणस्थानों में एक पर्याप्त आलाप ही नियम से होता है-- ऐसा गोम्मटसार, जीवकाण्ड में कहा है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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