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________________ ( 64 ) बीस भेदों का उल्लेख यत्र-तत्र उपलब्ध होता है। ये भेद विवक्षाकृत है। इन वर्गीकरण में पांच मूल भेद हैं। शेष पन्द्रह योग आस्रव के अवान्तर भेद है। उन सबका योग आस्रव में समाहार हो जाता है। योग का अर्थ है-प्रवृत्ति । शरीर, भाषा और मन की शुभ-अशुभ प्रवृत्ति रूप परिणति का नाम योग आस्रव है। जब तक प्रवृत्ति है तब तक बंधन है। अशुभ योग से अशुभ कर्म का बध होता है और शुभ योग से शुभ कर्म का। योग का सर्वथा निरोध होने से अयोग संवर अथवा शैलेशी अवस्था प्राप्त होती है । चूंकि अशुभ प्रवृत्ति का सम्पूर्ण निरोध व्रत संवर है, और शुभ प्रवृत्ति का सम्पूर्ण निरोध नहीं होता है, उसे अयोग संवर का अंश कहा जाता है। अयोग संवर की स्थिति में पहुँचने के तत्काल वाद जीव मुक्त हो जाता है । किसी एक आलम्बन पर मन को स्थापित करने अथवा मन, वचन और काय के निरोध को ध्यान कहा जाता है। ___ समिति का अर्थ है-संयत प्रवृत्ति, संयममय प्रवृत्ति । मन का सर्वथा निग्रह अथवा मन की असंयत प्रवृत्ति का निग्रह । मन ( योग ) बल बारहंगुलद्दिट्ठतिकालगोयराणंत?-वंजण-पज्जायाइणछदव्वाणि णिरंतरं चितिदे वि खेयाभावो मणबलो एसो मणबलो जेसिमत्थि ते मणबलिणो। एसो वि मणबलो लद्धी, विसिट्ठतवोबलेणुप्पज्जमाणत्तादो। कधमण्णहा बारहंगट्ठो मुहुत्तेणेक्केण बहूहि वासेहि बुद्धिगोयरभावण्णो चित्तखेय ण कुणेज्ज । -षट० खण्ड ० ४ । १ सू ३५ । पु० ९ । टीका बारह अंगों में निर्दिष्ट त्रिकाल विषयक अनंत अर्थ और व्यंजन पर्यायों से व्याप्त छह द्रव्यों का निरन्तर चिन्तन करने पर भी खेद को प्राप्त न होना मन बल है। यह मनबल जिनके हैं वे मनबली कहलाते हैं। यह मनबल भी लब्धि है, क्योंकि, वह विशिष्ट तप के प्रभाव से उत्पन्न होता है। अथवा बहुत वर्षों से बुद्धिगोचर होने वाला बारह अंगों का अर्थ एक मुहूर्त में खेदखिन्न किससे न करेगा। अर्थात करेगा ही।। पंचविहा परिण्णा पण्णत्ता, तंजहा --- उवहि परिणा, उवसम्मपरिण्णा, कषायपरिण्णा जोगपरिण्णा भत्तपाणपरिण्णा । -ठाण० स्था ५ । उ २ । सू १२३ पांच परिज्ञा होती है-यथा - उपधिपरिज्ञा, उपसर्गपरिज्ञा, कषायपरिज्ञा, योगपरिज्ञा और भक्तपान परिज्ञा । नोट-परिज्ञा अर्थात् परित्याग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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