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________________ ( ३२५ ) .५९ जीव दंडक और समपद दो भंते ! रइया पढ मसमयोववण्णगा कि समजोगी, कि विसमजोगी ? गोयमा ! सिय समजोगी, सिय विसमजोगी ? से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ-सिय समजोगी, सिय विसमजोगी ? गोयमा ! आहारयाओ वा से अणाहारए, अणाहारयाओ वा से आहारए सिय हीण, सिय तुल्ले, सिय अम्महिए। जइ होणे असंखेज्जइभागहीणे वा, संखेज्जइभागहीणे वा असंखेज्जइभागहीणे वा, सखेज्जगुणहीणे वा। अह अभहिए असंखेज्जइभागममहिए वा, संखेज्जइभागमभहिए वा, संखेज्जगुणमहिए वा, असखेज्जगुणमब्भहिए वा, से तेण?णं जाव सिय विसमजोगी। एवं जाव वेभाणियाणं। - भग० श० २५ । उ १ । सू ४ प्रथम समय उत्पन्न दो नारकी कदाचित् समयोगी और कदाचित् विषमयोगी होते हैं। क्योंकि आहारक नारकी से अनाहारक नारकी और अनाहारक से आहारक नारकी कदाचित् हीनयोगी, कदाचित तुल्य-योगी और कदाचित अधिक-योगी होता है। यदि वह हीनयोगी होता है तो असंख्यातवें भागहीन, संख्यातवें भागहीन, संख्यातगुणहीन या असंख्यातगुणहीन होता है। यदि अधिक योगी होता है तो असंख्यातवें भाग अधिक, संख्यातवें भाग अधिक संख्यात गुण अधिक या असंख्यात गुण अधिक होता है। इस कारण कहा गया है कि कदाचित् समयोगी और कदाचित् विषययोगी होता है । प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिए। विवेचन-प्रथम क्षेत्र में प्रथम समय में उत्पन्न नैरयिक 'प्रथम समयोत्पन्नक' कहाता है। इस प्रकार के दो नैरयिक जीव जिनकी उत्पत्ति विग्रह गति से अथवा ऋजुगति से आकर अथवा एक की विग्रह गति से और दूसरे की ऋजुगति से आकर हुई है, वे 'प्रथम समयोत्पन्नक' कहाते हैं। जिन दोनों के योग समान हो, वे समयोगी कहाते हैं और जिनके विषम हो वे विषमयोगी कहाते हैं । आहारक नारकी की अपेक्षा अनाहारक नारकीहीन योगवाला होता है, क्योंकि जो नारकी ऋजु गति से आकर आहारक रूप में उत्पन्न होता है, वह निरन्तर आहारक होने के कारण पुद्गालों से उपचित होता है ( बढा हुआ) होता है। इसलिये वह अधिक योग वाला होता है। जो लारकी विग्रहगति से आकर अनाहारकपने उत्पन्न होता है, वह अनाहारक होने से पुद्गलों से अनुपचित होता है अतः हीन योगवाला होता है। जो समान समय की विग्रह गति से आकर अनाहारकपने उत्पन्न होते हैं वे दोनों एक-दूसरे की अपेक्षा समान योगवाले होते हैं। जो ऋजुगति से आकर आहारक उत्पन्न हुआ है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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