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________________ सुक्कपक्खिएहि एवं चेव चत्तारिउद्देसगा भाणियव्या। जाव वालुयप्पभापुढविकाउलेस्ससुक्कपक्खियखुड्डागकलिओगणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ? तहेव जाव णो परप्पओगेणं उववज्जति । -भग० श० ३१ । उ २४ से २८ जैसा भवसिद्धिक के चार उद्देशक कहे वैसे ही अभवसिद्धिक के चार उद्देशक ( औधिक, कृष्णलेशी, नीललेशी, कापोतलेशी ) जानने । इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि के लेश्या संयोग से चार उद्देशक जानने । लेकिन सम्यगदृष्टि के प्रथम-द्वितीय उद्दशक में तमतमाप्रमा पृथ्वी में उपपात न कहना। मिथ्यादृष्टि के भी लेश्या-संयोग से चार उद्देशक भवसिद्धिक की तरह जानने । इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक के लेश्या संयोग से चार उद्दशक भवसिद्धिक की तरह कहने। इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी चार उद्देशक कहने। यावत् बालुकाप्रभा पृथ्वी के कापोत लेशी, शुक्लपाक्षिक क्षुद्रकल्योज नारकी कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं-यावत् परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते हैं-तक कहना। '५३.१७ सयोगी क्षुद्रयुग्म नारको का उद्वर्तन (खुड्डागकडजुम्मनेरइया ) ते णं भंते ! से जहाणामए पवए. एवं तहेव । एवं सो चेव गमओ जाव आयप्पओगेणं उव्वट्टति, णो परप्पओगेणं उव्वट्ट ति। रयणप्पभापुढविखुड्डागकड० ? एवं रयणप्पभाए वि, एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं खुड्डामतेओगखुड्डागदावरजुम्मखुड्डागकलिओगा। गवरं परिमाणं जाणियव्वं, सेसं तं चेव। कण्हलेस्सकडजुम्मणेरइया-एवं एएणं कमेणं जहेत उववायसए अट्ठावीसं उद्देसगा भणिया तहेव उवट्टणासए वि अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियवाणिरवसेसा। णवरं 'उब्वट्टति' त्ति अभिलावो भाणियन्वो, सेसं तं चेव। --भग० श० ३२ । सू १ से ५ .५३.१ से १५३-१६ में जैसे उपपात के २८ उद्देशक कहे उसी प्रकार उद्वर्तन के २८ उद्देशक कहने लेकिन उपपात के स्थान पर उद्वर्तन कहना। अस्तु वे सब आत्म-प्रयोग से उद्वर्तते हैं, परप्रयोग से नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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