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________________ ( २६६ ) टीका-संखेज्जा त्ति वयणेण असंखेज्जाणंताणं पडिसेहो कदो । संखेज्जं जदि वि अणेयपयारं तो वि चदुवण्णन्भंतरे चैव ते होंति, णो बहिद्धा, आहारमिस्सकालम्मि तिजोगावरुद्ध पज्जत्ताहारसरीरकालादो संखेज्जगुणहीणम्मि संचिदाणं जीवाणं चदुवण्णसंखाविरोहादो । आइरियपरंपरागदउवदेसेण पुण सत्तावीस जीवा होंति । आहारककाययोगी द्रव्य प्रमाण चौपन है । आहारकमिश्र काययोगी द्रव्य प्रमाण से संख्यात है । अस्तु – 'संख्यात है ।' इस वचन से असंख्यात और अनन्त का प्रतिषेध किया है । यद्यपि संख्यात के भी अनेक प्रकार है, तथापि वे चौपन के भीतर ही होते हैं, बाहर नहीं, क्योंकि तीन योगों से अवरुद्ध पर्याप्त आहारक शरीरकाल से संख्यातगुणे हीन आहारक मिश्रकाल में संचित जीवों के चौपन संख्या का विरोध है । किन्तु आचार्य परम्परागत सत्ताइस जीव होते हैं । ( देखो जीवस्थान द्रव्यप्रमाणानुगम सूत्र १२० की टीका । ४७ योग और कर्मबंधन जोगाणुवादेण मणजोगी वचिजोगी कायजोगी णाम कथं भवदि ? - षट्० खण्ड० २ । १ । सू ३२ । पु ७ पृष्ठ ० ७४ टीका - किमोदइओ कि खओवसमिओ कि पारिणामिओ कि खइओ किमुवसमिओत्ति ? ण ताव खइओ, संसारिजीवेसु सव्वकम्माणं उदएण वट्टमाणे जोगाभावप्यसंगादो, सिद्धसु सव्वकम्मोदयविरहिदेसु जोगस्स अस्थित्त संगाद च । ण पारिणामिओ, खइयम्मि वृत्तासेसदोसप्पसंगादो | णोवसमिओ ओवस मियभावेण मुक्कमिच्छाइट्ठिगुणम्मि जोगाभावप्यसंगादो। ण घादिकम्मोदयसमुब्भूवो, केवलिम्हि खीणघादिकम्मोदए जोगाभावप्यसंगादो। णाघादिकम्मोदयसमुब्भूदो, अजोगिम्हि वि जोगस्स सत्तपसंगादो । ण घादिकम्माणं खओवसमजणिदो, केवलिम्हि जोगाभावप्पसंगा । णाघादिकम्मक्खओवसमजणिदो, तत्थ सव्व देसघादिफद्दयाभावादो खओवसमाभावा । एवं सव्वं बुद्धिम्हि काऊण मण वचि - कायजोगी कधं होवि त्ति वृत्तं । खओवसमियाए लद्धीए । - षट्० खण्ड० २ । १ । सू ३३ । पु ७ पृष्ठ ० ७५ टीका - जोगो णाम जोवपदेसाणं परिपफंदो संकोच-विकोचलक्खणो । सो चकम्माणं उदयजणिदो, कम्मोदयविरहिदसिद्धसु तदणुवलंभा । अजोगि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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