SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २५८ ) टीका - एत्थ पुव्वाइरिओवएसेण सट्ठी जीवा हवंति । कुदो ? पदरे वीस, लोगपूरणे वीस, पुणरवि ओदरमाणा पदरे वीस चेव भवंति त्ति । कार्मणकाययोगियों में मिध्यादृष्टि जीव द्रव्य - प्रमाण की अपेक्षा ओघप्ररुणा के समान है । ओघेण मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, अनंता 1 - षट्० खण्ड ० १ । २ । २ । पु ३ | पृष्ठ० १० से मिथ्यादृष्टि जीव द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा अनंत है । चूंकि सर्व जीवराशि गंगानदी के प्रवाह के समान निरंतर विग्रह करके उत्पन्न होती है, इसलिए कार्मण-कायराशि की प्ररूपणा मूलोघ प्ररूपणा के समान होती है । विरुद्ध नहीं । अस्तु कार्मणका योगियों के प्रमाण की ध्रुवराशि कहते हैं— काययोगियों की ध्रुवराशियों को अन्तर्मुहूर्त से गुणित करने पर कामंणकाययोगियों की ध्रुवराशि होती है । इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है - संख्यात आवलीयात्र अन्तर्मुहूर्तकाल के द्वारा यदि सर्व जीवराशि का संचय होता है, तो तीन समय में कितना समय प्राप्त होगा, इस प्रकार इच्छा राशि से फल राशि को गुणित करके जो प्राप्त हो उसे प्रमाणराशि से भाजित करने पर अन्तर्मुहूर्तकाल से भाजित सर्व जीवराशि आती है । सासादन सम्यग्दृष्टि और सम्यग्दृष्टि कार्मणकाययोगी जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा सामान्य प्ररूपणा के समान पल्योपम के असंख्यातवें भाग हैं । चूंकि पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण तिर्यंच असंयत सम्यग्दृष्टि जीव विग्रह करके देवों में उत्पन्न होते हुए पाये जाते हैं । तथा पल्योपम के असंख्यातवें भाग-प्रमाण देव सासादन सम्यग्दृष्टि जीव, और उतने ही तिर्यंच सासादन जीव क्रम से तिर्यंच और देवों में विग्रह करके उत्पन्न होते हुए पाये जाते हैं, इसलिये सासादन सम्यग्दृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि कार्मणकाययोगियों की प्ररूपणा सामान्य प्ररूपणा के तुल्य है । अब इनके अवहारकाल को उत्पत्ति को कहते हैं—असंयतसम्यग्दृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि farafar अवहारकाल को आवली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर क्रम से कार्मण काययोगी असंयत सम्यगदृष्टि और सासादन सम्यग्दृष्टि जीवों के अवहारकाल हो हैं, क्योंकि विग्रह करके मरने वाली राशि देवों में उत्पन्न होने वाली राशि के असंख्यातवें भाग मात्र पाई जाती है । Jain Education International • ०२ काययोगी का द्रव्य प्रमाण - ०३ औदारिक काययोगी तथा औदारिकमिश्र काययोगी का द्रव्य प्रमाण • ०९ कार्मण काययोगी का द्रव्य प्रमाण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy