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असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगी केवली औदारिकमिश्र काययोगी जीव संख्यात है। ११४ ।
सम्यग्दृष्टि देव और नारकी जीव मनुष्यों में उत्पन्न होते हुए संख्यात ही पाये जाते हैं। यदि ऐसा न माना जाय तो मनुष्य पर्याप्त राशि को असंख्यातवें पने का प्रसंग आ जाता है।
सूत्र के अविरुद्ध आचार्यों के उपदेशानुसार औदारिकमिश्रकाययोग में सयोगी केवली जीव चालीस होते हैं। यथा--कपाट समुद्घात में आरोहण करने वाले औदारिकमिश्रकाययोगी बील और उतरते हुए बीस होते हैं । .०८ कार्मणकाययोगी का द्रव्य प्रमाण कम्मइयकायजोगीसु मिच्छाइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, मूलोघं ।
-षट्० खण्ड० १ । २ । सू १२१ । पु ३ । पृष्ठ० ४०२ टीका-जदो सव्वजीवरासी गंगापवाहो व्व णिरतरं विग्गहं काऊणुप्पज्जदि, तेण कम्मइयरासिस्स मूलोघपरुपवणा | विरुद्धा। एदस्स सुत्तस्स धुवरासी वुच्चदे। कायजोगिधुवरासिमतोमुहत्तण गुणिदे कम्मइयजोगिधुवरासी होदि। तं जहा-संखेज्जावलिमेत्तअंतोमुहुत्तकालेण जवि सव्वजीवरासिस्स संचओ होदि, तो तिण्ह समयाणं केत्तियं संचयं लभामो ति पमाणेण इच्छागुणिदफलमोवट्टिय अंतोमुत्तोवट्टिय सव्वजीवरासी आगच्छदि।। सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, ओघं ।
-षट्० खण्ड० १ । २ । सू १२२ । पु ३ । पृष्ठ• ४०३ टीका -जेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता तिरिक्खअसंजवसम्माइट्ठिणो विग्गहं काऊण देवेसुष्पज्जमाणा लमंति, देव-तिरिक्ख सासणसम्माइटिणो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता तिरिक्ख-देवेसु विग्गहं करिय उववज्जमाणा लन्भंति, तेण एदेसि पमाणपरुवणा ओघपरुवणाए तुल्ला। एदेसिमवहारकालुप्पत्ती वुच्चदे। असंजदसम्मादिट्ठि-सासणसम्मादिट्टिवेउन्वियमिस्सअवहारकाले आवलियाए असंखेज्जविभाएण गुणिवे कम्मइयकायजोगिअसंजदसम्मादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठिअवहारकाला भवंति। कुदो ? विग्गहं करिय मरमाणरासीए देवेसु उववज्जमाणरासिस्स असंखेज्जदिभागत्तादो। सजोगिकेवली दवपमाणेण केवडिया, संखेज्जा।
--षट्० खण्ड• १ । २ । सू १२३ । पु ३ । पृष्ठ ० ४.४
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